सोमवार, 29 नवंबर 2010

मैं ख़बरदार न होता तो भला क्या होता



आपसे प्यार न होता, तो भला क्या होता,
मैं गुनहगार न होता तो भला क्या होता !

चश्मे-नरगिस उठा के यूँ झुका लिया उसने
हाय  इज़हार न होता, तो भला क्या होता !

किसी की आँख  में सावन बसा के, भूल गए
ये इन्तजार  न होता तो भला क्या होता  !

हर तरफ जिक्र है  तेरी निगाहे-खंजर का,
जिगर के पार न होता, तो भला क्या होता !

आपकी आंख के ये  मयकदे  कहाँ  जाते  ?
मैं जो मयख्वार न होता, तो भला क्या होता !

जिधर भी देखिये रुसवाइयों का रोना  है
मैं खबरदार न होता तो भला क्या होता !

मैंने भी चाँद को छूने कि इज़ाज़त माँगी
आज  इंकार न होता, तो भला क्या होता !

ख़्वाब 'आनंद' ने देखा तो  वफ़ा का देखा
ख़्वाब बेकार न होता तो भला क्या होता !

- आनंद