शनिवार, 13 अप्रैल 2013

ये ज़ख्म जरा और उभर आये तो अच्छा

ये  ज़ख्म जरा और  उभर आये  तो अच्छा
वो शख्स इधर होके गुजर जाए तो अच्छा

उसकी निगाहे-नाज़ बने क़त्ल का सामाँ
खंज़र की तरह दिल में उतर जाए तो अच्छा

जिसने भी कहा हो कभी, 'है इश्क़ ही ख़ुदा'
अब अपने बयानों में असर लाये तो अच्छा

वैसे तो वो मिसाल है अपने में आप ही
आदत भी अगर थोड़ी सुधर जाए तो अच्छा

सड़कों पे देर रात,  भटकती  है  एक  शै
उसके ज़ेहन में घर भी कभी आये तो अच्छा

'आनंद' यही इल्तिज़ा करता है रात दिन
तेरा लबों पे नाम हो मर जाए तो अच्छा

- आनंद




आँखों की बरसात के बीच ....

जिस विज्ञान ने हमें मिलाया था
अंततः उसी ने छीन भी लिया
एक फोन
एक मेल
और बस नीला गहरा आसमान
जिसका कहीं कोई ओर छोर नहीं
मैं चाहता हूँ केवल इतना
कि
मेरे मरने की खबर
तुम तक पहुँचे
और तुम्हारे न रहने की मुझ तक
अगर तुम्हें लगता है कि
मुझे इतना भी मिलने का हक़ नहीं
तो तुम बेवफा हो !

- आनंद