रविवार, 29 अप्रैल 2012

जब भी किसी के प्यार में होती हैं लड़कियां







मुस्किल से, जरा देर को सोती हैं लड़कियां
जब भी किसी के प्यार में होती हैं लड़कियां

'पापा' को कोई रंज न हो, बस ये सोंचकर,
अपनी हयात ग़म में डुबोती हैं लड़कियां

फूलों की तरह खुशबू बिखेरें सुबह से शाम
किस्मत भी गुलों सी लिए होती हैं लड़कियां

'उनमें'...किसी मशीन में, इतना ही फर्क है
सूने  में  बड़े  जोर  से,  रोती  हैं  लड़कियां

टुकड़ों में बांटकर कभी,  खुद को निहारिये
फिर कहिये, किसी की नही होती हैं लड़कियां

फूलों का हार हो,  कभी बाँहों का हार हो
धागे की जगह खुद को पिरोती हैं लड़कियां

'आनंद' अगर अपने तजुर्बे  कि  कहे तो
फौलाद हैं,  फौलाद ही होती हैं लड़कियां

-आनंद द्विवेदी
२९ अप्रेल २०१२