सोमवार, 27 दिसंबर 2021

इक न इक दिन..

इत्र बनेंगे  उड़ जाएंगे  इक न इक दिन
ऐसे रुख़सत हो जाएंगे इक न इक दिन

लिए पोटली खट्टी मीठी यादों की
उनकी गलियों में जाएंगे इक न इक दिन

पत्थर, मोम, फूल या काँटे, सब उनके
ऐसे मन को बहलायेंगे इक न इक दिन

यही सोचकर सपने देख रहा था मैं
शायद वो इनमें आएंगे इक न इक दिन

हमने कोशिश की थी उन सा होने की
वो किस्सा भी बतलायेंगे इक न इक दिन

उन्हें पता है, हमसे और न कुछ होगा
रो धो कर चुप हो जाएंगे इक न इक दिन

मैं तो ख़ैर बज़्म से उनकी उठ आया
अलबत्ता वह पछताएंगे इक न इक दिन

मेले का 'आनंद' झमेले का जीवन
मेले में ही खो जाएंगे इक न इक दिन

@ आनंद