सोमवार, 9 सितंबर 2013

आँखों में एक किर्च सी अक्सर गड़ी रही

आँखों में एक किर्च सी अक्सर गड़ी रही
ख्वाबों से हकीक़त ही  हमेशा  बड़ी रही

मैं मौत से भी अपने तजुर्बे न कह सका
लछमन की तरह सर की तरफ वो खड़ी रही

इस जिंदगी ने इतना तवज्जो दिया मुझे
हरदम मेरे सुकून के पीछे पड़ी रही

आज़ाद इश्क़ ने तो मुझे भी किया मियाँ  
पर रूह मिरी क़ैद की खातिर अड़ी रही

अगले जनम में देखने की बात हुई है
'आनंद' तुझे बेवजह जल्दी बड़ी रही

- आनंद