सोमवार, 9 सितंबर 2013

आँखों में एक किर्च सी अक्सर गड़ी रही

आँखों में एक किर्च सी अक्सर गड़ी रही
ख्वाबों से हकीक़त ही  हमेशा  बड़ी रही

मैं मौत से भी अपने तजुर्बे न कह सका
लछमन की तरह सर की तरफ वो खड़ी रही

इस जिंदगी ने इतना तवज्जो दिया मुझे
हरदम मेरे सुकून के पीछे पड़ी रही

आज़ाद इश्क़ ने तो मुझे भी किया मियाँ  
पर रूह मिरी क़ैद की खातिर अड़ी रही

अगले जनम में देखने की बात हुई है
'आनंद' तुझे बेवजह जल्दी बड़ी रही

- आनंद



6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी लेखक मंच पर आप को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपके लिए यह हिंदी लेखक मंच तैयार है। हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपका योगदान हमारे लिए "अमोल" होगा |

    मैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003

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  2. बहुत सुंदर ! अगला जन्म यही है...अभी के अलावा सभी है छलावा...

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  3. सुंदर रचना...
    आप की ये रचना आने वाले शुकरवार यानी 13 सितंबर 2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... ताकि आप की ये रचना अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है... आप इस हलचल में शामिल अन्य रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि डालें...इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है...


    आप सब की कविताएं कविता मंच पर आमंत्रित है।
    हम आज भूल रहे हैं अपनी संस्कृति सभ्यता व अपना गौरवमयी इतिहास आप ही लिखिये हमारा अतीत के माध्यम से। ध्यान रहे रचना में किसी धर्म पर कटाक्ष नही होना चाहिये।
    इस के लिये आप को मात्रkuldeepsingpinku@gmail.com पर मिल भेजकर निमंत्रण लिंक प्राप्त करना है।



    मन का मंथन [मेरे विचारों का दर्पण]

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  4. सभी लिंक्स बहुत बढ़िया हैं हमारे ब्लॉग की पोस्ट को यहाँ शामिल करने का तहेदिल से शुक्रिया |

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