गुरुवार, 20 मार्च 2014

तौबा तौबा ...


हुई बहुत ये दुनियादारी, तौबा तौबा
सपने उनके आँख हमारी तौबा तौबा

राजनीति बन गयी गिरोहों का अड्डा
लूट रहा है जिसकी बारी, तौबा तौबा

देश- देश चिल्लाने वालों के दिल  में
मज़हब हुआ वतन से भारी तौबा तौबा

मंदिर मस्ज़िद प्रेम नहीं फैलाते अब
नफरत के हैं कारोबारी तौबा तौबा

आधा पेट भरा बच्चों का जैसे तैसे
भूखी ही सोयी महतारी तौबा तौबा

बच्चों की आँखों के सपने पूछेँगे
मेरी क्या थी जिम्मेदारी तौबा तौबा

अपना ही 'आनंद' तलाशा अब तक तो
अबतक हमने घास उखारी तौबा तौबा

-आनंद







शनिवार, 15 मार्च 2014

होरी में विरह ; कुछ दोहे



मस्तानों की टोलियाँ नाचें ढोल बजाय
फागुन में सब छूट है , चाहे जो बौराय

भरि पिचकारी आगया करने तंग बसंत
ज्यों सपनों में छेड़ते हैं परदेशी कंत

अँगिया गीली हो गयी सिहरै सकल शरीर
दोखी फागुन का जनै बिरही मन कै पीर

मस्ती सारे बदन में, अंखियन चढ़ा खुमार
बिन साजन बैरी हुआ, होरी का  त्यौहार

मन का पंछी है हठी ढूँढै  लाख  उपाय
प्रियतम की तस्वीर में रहा अबीर लगाय

तान न छेड़ो फाग की डारो नहीं गुलाल
ये ऋतु है उनके बिना जस विधवा का गाल

- आनंद
होली २०१४ पर








बुधवार, 5 मार्च 2014

कौन ऐसी आँख है जो नम नहीं

कौन ऐसी आँख है जो नम नहीं  हैं दोस्तों
कौन है ऐसा जिसे कुछ ग़म नहीं है दोस्तों

आइये मिलकर उजालों के लिए आगे बढ़ें
इन अंधेरों में जरा भी  दम नहीं है दोस्तों

डूबिये तो, एक लम्हे में सदी मिल जायेगी
चार दिन की जिंदगी भी कम नहीं है दोस्तों

मुस्कराकर पूछते हैं वो उदासी का सबब,
ये सरासर चोट है मरहम नहीं है दोस्तों

क्यों किसी के साथ में आनंद को खोजें भला
छोड़िये भी , हम अकेले कम नहीं हैं दोस्तों

- आनंद