रविवार, 1 मार्च 2020

शहर में चाँदमारी

हवा में गंध तारी हो गयी है
शहर में चाँदमारी हो गयी है

यही बोया था हमने जो उगा है ?
ये कैसी काश्तकारी हो गयी है

लहू को देख, खुश होने लगे हैं
ये क्या आदत हमारी हो गयी है

वो इन्सां था कि प्यादा, मर गया है
मगर कुर्सी खिलाड़ी हो गयी है

संपोले दूध पीकर डस रहे हैं
सियासत को बीमारी हो गयी है

गज़ब जस्टिफिकेशन हो रहे है
जुबाँ सब की कटारी हो गयी है

है अगला कौन सा घर कौन सा सर
अभी मर्दनशुमारी हो गयी है

यहाँ से देश की क्या राह होगी
हमारी जिम्मेदारी हो गयी है

अभी 'आनंद' का मौसम नहीं है
ख़ुशी पर रंज भारी हो गयी है ।

© आनंद