एक दिन
जब मैं आसमान पर
चाँद को
चूम रहा था |
एक जन्मजात चोर
मेरे सारे सपने
चुरा रहा था
यहाँ
धरती पर |
वो सपने
जो किसी और के
काम के नहीं हैं
थोड़ी देर खेलेगा वो
उनसे
और फिर फेंक देगा
तोड़ मरोड़ कर |
अब सोंचता हूँ
कुछ तो वजह होगी ही
जब तूने
इस नायाब दर्द के लिए
मुझे चुना है |
तो फिर कर इन्तेहाँ
सितम की अपने
क्योंकि जानता हूँ मैं
यह तो
आगाज़ है अभी |
अय 'छलिया' !
मेरे पास
और कुछ था ही नहीं
सो मैंने भी
तुझे दांव पर लगा दिया
अब
इस खेल में
हारेगा भी तू
और जीतेगा भी तू ही
आ जा ....
मैं प्रस्तुत हूँ !!
- आनंद द्विवेदी १७/११/२०११
वाह, बिल्कुल अलग अंदाज में अस्तित्त्व को चुनौती देती रचना..
जवाब देंहटाएंअब सोंचता हूँ
जवाब देंहटाएंकुछ तो वजह होगी ही
जब तूने
इस नायाब दर्द के लिए
मुझे चुना है |
तो फिर कर इन्तेहाँ
सितम की अपने
क्योंकि जानता हूँ मैं
यह तो
आगाज़ है अभी |
Wah! Ekdam anoothee rachana!
वाह एकदम अलग अंदाज में उलाहना...सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंदाज...खुबसूरत रचना..
जवाब देंहटाएंअभिव्यंजना में आप का स्वागत है...
इस खेल में
जवाब देंहटाएंहारेगा भी तू
और जीतेगा भी तू ही
आ जा ....
मैं प्रस्तुत हूँ !!
बहुत अलग अंदाज़ है ... अच्छी नज़्म
ठीक ही तो है...हारेगा भी तू ...जीतेगा भी तू......बढ़िया जी बढ़िया !!
जवाब देंहटाएंअब सोंचता हूँ
जवाब देंहटाएंकुछ तो वजह होगी ही
जब तूने
इस नायाब दर्द के लिए
मुझे चुना है |prayojan nimit hi sabkuch hai
अब सोंचता हूँ
जवाब देंहटाएंकुछ तो वजह होगी ही
जब तूने
इस नायाब दर्द के लिए
मुझे चुना है |
वाह ...बहुत खूब ।
bahut sunder bhav ...samarpan ka ..
जवाब देंहटाएंवाह ... क्या बात है .. जीवन के इस खेल को वो छलिया ही तो खेल रहा है ... फिर जेट या हार तो उसकी ही होनी है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंOhooo direct panga.. bahut khub.. pasand aaya ye andaaz.. Chhaliya ko bhi to pata h k jis se joojh raha h wo usi ki mitti ka bana h :)
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है....
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना...
सादर बधाई
lajawab prastuti.
जवाब देंहटाएंnishabd...............!!
जवाब देंहटाएंkya kahun.....???
अनुपम ,लाजबाब जी.
जवाब देंहटाएं