रविवार, 18 मार्च 2012

दो चार रोज ही तो मैं तेरे शहर का था



दो चार रोज ही तो मैं तेरे शहर का था,
वरना तमाम उम्र तो मैं भी सफ़र का था |

जब भी मिला कोई न कोई चोट दे गया,
बंदा वो यकीनन बड़े पक्के जिगर का था |

हमने भी आज तक उसे भरने नहीं दिया,
रिश्ता हमारा आपका बस ज़ख्म भर का था |

तेरे उसूल,  तेरे  फैसले ,   तेरा  निजाम ,
मैं किससे उज्र करता, कौन मेरे घर का था |

जन्नत में भी कहाँ सुकून मिल सका मुझे,
ओहदे पे वहाँ भी, कोई...तेरे असर का था |

मंजिल पे पहुँचने की तुझे लाख दुआएं,
'आनंद' बस पड़ाव तेरी रहगुज़र का था |

-आनंद द्विवेदी
१८ मार्च २०१२


25 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!!
    बहुत खूब...
    दाद कबूल कीजिये.

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  2. तेरे उसूल, तेरा फैसला, तेरा निजाम,
    मैं किससे उज्र करता, कौन मेरे घर का था |

    बहुत बढ़िया लिखा है आनंद भाई ...

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  3. हमने भी आज तक उसे भरने नहीं दिया,
    रिश्ता हमारा आपका बस ज़ख्म भर का था |

    बहुत खूब ... सुंदर गजल

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  4. ओहदे पे वहाँ भी, कोई...तेरे असर का था
    ...lovely :)

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  5. आनंद जी..आजकल जल्दी जल्दी लिख रहे हैं,आप.बढ़िया लिख रहे हैं...बधाई.जन्नत में भी कहाँ सुकून मिल सका मुझे,
    ओहदे पे वहाँ भी, कोई...तेरे असर का था |
    कहीं और चैन-ओ -सुकून न मिला
    जो करार तेरी बातों तेरे दीदार में था

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  6. वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।

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  7. मंजिल पे पहुँचने की तुझे लाख दुआएं,
    'आनंद' बस पड़ाव तेरी रहगुज़र का था |...बहुत खूब कहा है आपने आनंद भाई ..

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  8. बहुत खूब आनंद भाई...
    हार्दिक बधाई

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  9. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    हमने भी आज तक उसे भरने नहीं दिया,
    रिश्ता हमारा आपका बस ज़ख्म भर का था

    सुभान अल्लाह...क्या शेर कहें हैं आपने इस ग़ज़ल में...भाई वाह... बधाई स्वीकारें.

    नीरज

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    1. नीरज जी आप जैसे ख्यातिप्राप्त शायर के इन शब्दों को मैं आशीर्वाद की तरह ले रहा हूँ !

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  10. हमने भी आज तक उसे भरने नहीं दिया,
    रिश्ता हमारा आपका बस ज़ख्म भर का था |

    दर्द के रिश्ते यूँ
    जल्दी नहीं भरते....
    तारीफ करूँ भी तो कहाँ से...
    दर्द से लबरेज़ हूँ....
    लफ्ज़ ही नहीं मिलते....!!

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    1. पूनम जी पूरे दिल से आपने पढ़ा भी है और टिप्पड़ी भी दिया है आभार आपका !

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  11. शुक्रिया आप सभी का जो इस घोषित नालायक की बातों को भी इतने प्यार से पढ़ते हैं !

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  12. जब भी मिला कोई न कोई चोट दे गया,
    बंदा वो यकीनन बड़े पक्के जिगर का था |

    बहुत खूब आनंद भाई ....

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    1. सतीश भैया ! आपका दिल ना जाने कितना बड़ा है भगवान आपको मेरी भी उम्र दें !

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  13. तेरा यूँ वादा लेकर
    मुझ से जुदा होना ,
    एक हसीन धोखे को
    हकीकत का निशा समझी थी मैं |........अनु

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    1. मैंने सोंचा था धोखे केवल मुझे ही होते हैं अनु जी ...शुक्रिया !

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  14. नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
    आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
    मेरी एक नई मेरा बचपन
    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
    http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
    दिनेश पारीक

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