एक
तुमने किसी माँ को
रोते हुए देखा है ....
तुमको कैसा लगता है ?
तुमको कैसा लगता है ?
मुझे तो अच्छा नहीं लगता
तुम्हारी नहीं कह सकता मैं
अच्छा छोड़ो ..
ये बताओ
ये बताओ
क्या तुमने किसी बेटी को
रोते हुए देखा है ?
मैंने तो देखा है
तुमने भी जरूर देखा होगा
क्योंकि कई बार
मुझे भी ऐसा लगता है कि ..
तुम ही सबके पिता हो
परम पिता !
न जाने क्यों ऐसा लगता है मुझे
तुमने भी जरूर देखा होगा
क्योंकि कई बार
मुझे भी ऐसा लगता है कि ..
तुम ही सबके पिता हो
परम पिता !
न जाने क्यों ऐसा लगता है मुझे
और खास बात ये कि.... मैंने
जब जब उसे रोते हुए देखा
तब तब
मैंने तुमको भी देखा
हम दोनों लाचार
वैसे एक राज की बात बताऊँ ??
वैसे एक राज की बात बताऊँ ??
जब जब मैं तुमको लाचार देखता हूँ ना
मेरा मन करता है कि
मैं जोर जोर से नाचूँ...........!
दो
मैं सुदामा नहीं हूँ !
और मुझे ऐसा कोई मुगालता भी नहीं है
फिर भी
एक पोटली है मेरे पास ...
अरे कांख में दबी हुई नहीं
अरे कांख में दबी हुई नहीं
इधर सर पे रखी हुई ...
मेरी पोटली में
बहुत सारी चीजें हैं ...जो तुमने
दिया था मुझे
देखो ना
बहुत सारी चीजें हैं ...जो तुमने
दिया था मुझे
देखो ना
इसमें है ...
नदी किनारे की एक जादुई शाम
तपते जून की एक दोपहर
तारों भरी कुछ सर्द रातें (जब चाँद भी अच्छा लगता था )
तपते जून की एक दोपहर
तारों भरी कुछ सर्द रातें (जब चाँद भी अच्छा लगता था )
दीवानों की तरह घुमड़े हुए कुछ बादल
बच्चों की तरह भीगता
और
पागलों की तरह खुश होता हुआ मैं !
मेरा वो इंतज़ार
(अब जिसके आगे तुमने 'मूक' और पीछे 'अनंत काल के लिए' लिख दिया है )
देखना ...
मेरा वो इंतज़ार
(अब जिसके आगे तुमने 'मूक' और पीछे 'अनंत काल के लिए' लिख दिया है )
देखना ...
एक छोटी सी गांठ में बंधा हुआ
थोड़ा सा
भरोसा भी होगा ...
इनमे से एक भी चीज़
मेरे काम की नहीं है
इन्हें वापस ले लो (तुभ्यमेव समर्पयामि)
इन सबके बदले में
मुझे एक चीज़ चाहिए
इन सबके बदले में
मुझे एक चीज़ चाहिए
और वो ये कि....
मुझे अब कुछ नहीं चाहिए
हो सके तो
हो सके तो
मुझे मुक्त करो अब
नहीं तो जय राम जी की !
आनंद
२६-०३-२०१२
मुझे अब कुछ नहीं चाहिए
जवाब देंहटाएंहो सके तो
मुझे मुक्त करो अब...बड़ी गहराई में पहुंच गए आप।
अच्छा अंदाज़ लगा कविता का।
वाह वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आनंद जी....
गहन भाव लिए रचनाएँ...
बहुत भायीं...
सादर
अनु
इन सबके बदले में
जवाब देंहटाएंमुझे एक चीज़ चाहिए
और वो ये कि....
मुझे अब कुछ नहीं चाहिए
हो सके तो
मुझे मुक्त करो अब
बहुत खूब ....लिखा और मांगा भी ...
ab fansa hai .........dekhein kya jawab deta hai :))))))))))
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए सुन्दर रचनाएँ...
जवाब देंहटाएंनयापन लिए कवितायेँ ! आनंद जी, पढ़कर आनंद आया.
जवाब देंहटाएंएक छोटी सी गांठ में बंधा हुआ
जवाब देंहटाएंथोड़ा सा
भरोसा भी होगा ...
आनंद जी यह वार्तालाप मनभावन है...पर यह भरोसा काम का कैसे नहीं है ?यह जानना चाहूंगी...
निधि जी ज्यादा कुछ तो नहीं कह पाउँगा मैं, बस यही आप जान लीजिए (मेरी जानिब से ) कि ये भरोसा ही एक छलावा है ... एक डोर जो ना तो टूटती है ना टूटने देती है ..ये भरोसा जो है न एक आस पैदा करता है ...... जो कि नहीं चाहिए मुझे !
हटाएंWah! Bahut khoob!
जवाब देंहटाएंइन सबके बदले में
जवाब देंहटाएंमुझे एक चीज़ चाहिए
और वो ये कि....
मुझे अब कुछ नहीं चाहिए
हो सके तो
मुझे मुक्त करो अब
कुछ नहीं सिर्फ मुक्ति की चाहत... गहन अभिव्यक्ति...
कल 28/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
जवाब देंहटाएंआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... मधुर- मधुर मेरे दीपक जल ...
एक पोटली है मेरे पास ...
जवाब देंहटाएंअरे कांख में दबी हुई नहीं
इधर सर पे रखी हुई ...
मेरी पोटली में
बहुत सारी चीजें हैं ...जो तुमने
दिया था मुझे..
बस यही समर्पित कर दें माधव को.....
और हल्के हो जाएँ.....!
सुन्दर भावपूर्ण.....
गठरी को खोलना नहीं कभी भी ... नहीं तो भरोसा टूट जायगा ... भरोसे का एहसास होते रहे ये जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंगहरी रचना ....
बहुत गहन भाव को लिए माधव से संवाद अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंsamvad ka yah anokha tarika pasand aaya .
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति में माधव मुस्कुराते दिख रहे हैं...
जवाब देंहटाएंनिश्छल हृदय की मनमोहक तू तू मैं मैं आनंद जी...
सुंदर सृजन...
सादर बधाई स्वीकारें...
कृष्ण के माध्यम से खुद के मन की बाते रखना ...आप बखूबी जानते हैं
जवाब देंहटाएंस्वप्न कितने अभी हैं अधूरे पड़े ,
जिंदगी में अभी तो कितने काम रे ,
तू भी जी ले इसे मुस्कुराते हुए ,
आह री !यह सृजन की मधुर वेदना |..............अनु