शुक्रवार, 30 मार्च 2012

इक जिस्म रह गया हूँ महज




अब मैं किसी के प्यार के काबिल नहीं रहा, 
इक जिस्म रह गया हूँ महज, दिल नहीं रहा |

कैसे गुमान होता मुझे अपने क़त्ल का, 
जब मैं किसी के ख़्वाब का क़ातिल नही रहा |

जब से किसी ने मुझको तराजू पे रख़ दिया,
अय जिंदगी, मैं तेरे  मुक़ाबिल  नही रहा  |

मँझधार ही नसीब है,  या पार लगूंगा ?
हद्दे निगाह तक कोई साहिल नही रहा |

दुनिया के तकाज़े हैं, खुदगर्ज़ हुआ जाये,
बस एक यही मसला मुश्किल नही रहा |

'आनंद' मिट गया औ भनक भी नही लगी,
पहले तो मैं इतना कभी गाफ़िल नहीं रहा  !

आनंद द्विवेदी 
३० मार्च २०१२ 

11 टिप्‍पणियां:

  1. जब से किसी ने मुझको तराजू पे रख़ दिया,
    अय जिंदगी, मैं तेरे मुक़ाबिल नही रहा |
    ्गज़ब की गज़ल्………हर शेर मुकम्मल्।

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  2. दुनिया के तकाज़े हैं, खुदगर्ज़ हुआ जाये,
    बस एक यही मसला मुश्किल नही रहा | बहुत सच्ची बात आनंदजी.. सुंदर ग़ज़ल..

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  3. मँझधार ही नसीब है, या पार लगूंगा ?
    हद्दे निगाह तक कोई साहिल नही रहा |
    गहन ...बहुत सुंदर शायरी .. ...

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  4. बहुत सुन्दर गज़ल.....!
    हर शेर खूब ...!!

    "अब मैं किसी के प्यार के काबिल नहीं रहा,
    इक जिस्म रह गया हूँ महज, दिल नहीं रहा |"


    लेकिन जब दिल ही नहीं रहा तो आगे की सारी उलझनें ख़त्म......!
    गज़ल वाकई खूबसूरत होने के साथ मार्मिक ज्यादा है ...!!
    ज़लखुदा आपका दिल तो सलामत रखे कम से कम....!!

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  5. जब से किसी ने मुझको तराजू पे रख़ दिया,
    अय जिंदगी, मैं तेरे मुक़ाबिल नही रहा |


    वाह ॥बहुत खूबसूरत गजल ...

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  6. बहुत खूबसूरत गज़ल आनंद जी...

    मँझधार ही नसीब है, या पार लगूंगा ?
    हद्दे निगाह तक कोई साहिल नही रहा |

    लाजवाब...
    सादर
    अनु

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  7. मँझधार ही नसीब है, या पार लगूंगा ?
    हद्दे निगाह तक कोई साहिल नही रहा |

    दुनिया के तकाज़े हैं, खुदगर्ज़ हुआ जाये,
    बस एक यही मसला मुश्किल नही रहा |
    वाह ...लाजवाब करती पंक्तियां ...

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  8. बहुत खूबसूरत गज़ल आनंद जी...क्या बात है....

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  9. जब से किसी ने मुझको तराजू पे रख़ दिया,
    अय जिंदगी, मैं तेरे मुक़ाबिल नही रहा

    इतना ख़ूबसूरत शे'र !

    प्रियवर आनंद जी
    आनंदाभिनंदन !

    आपका शायर लगातार बुलंदी पर है …
    तमाम अश्'आर काबिले-तारीफ़ हैं
    मुबारकबाद कबूल कीजिए हुज़ूर !


    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. तेरी यादों को संभाल के रखूं कब तक
    आँसू आँखों के उछाल के रखूं कब तक ||...अनु

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  11. आप सभी मित्रों का हार्दिक आभार !

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