कितना फर्क है
मुझमें और तुममें
शरीर की सीढ़ियों के उस पार..तुम
कितनी सहज सी लगती हो
जैसे सवार हो घोड़े पर, या कि
एक जादुई कालीन है तुम्हारा शरीर
जिस पर चढ़कर तुम
जब चाहो .... जिस लोक में
जा सकती हो
किसी भी
और किसी के भी संसार में ,
दरवाजे के बाहर ही
शरीर को इंतजार करता छोड़कर
बेहिचक , दनदनाते हुए ...
किसी के भी अन्दर तक पंहुच जाना
कितना सुगम है
तुम्हारे लिए !
और एक मैं हूँ ...
एक कदम भी कहीं बढ़ाता हूँ
तो ये शरीर साथ चल पड़ता है
पता नही ये मुझे ढो रहा है
या मैं इसको .
हर समय टकटकी लगाये
ऐसे देखता रहता है...जैसे जन्मों का कर्जदार हूँ इसका
और इस बार सारा वसूलेगा सूद सहित
या फिर ऐसे देखता है जैसे .
मौत के समय मेरे पापा ने मुझे देखा होगा
तब.... जबकि मैं वहां टाइम से नहीं पहुँच पाया था ...और ...
एक दिन इसकी नज़रों से बचकर
भाग आऊंगा मैं तुम्हारे पास
यह जानते हुए भी कि .... तुम
नही मिलोगी मुझे
फिर भी मैं आऊंगा तो
और साथ लाऊंगा
अपनी बहुत सारी बेवकूफियां
थोड़े से आंसू ....और
ढेर सारा दीवानापन !
..........
तुम ऐसा करना
मेरे लिए थोड़ा सा 'राजमा चावल'
एक कप चाय ...वैसी ही (दूध कम चीनी बहुत कम और पत्ती ज्यादा )
जरा सी मेंहदी कि खुशबू ...और
एक टुकड़ा...हंसी का
छोड़ जाना बस ...............
मुझे ज्यादा देर तक ये शरीर
क़ैद नही रख़ पायेगा
बाहर आने के लिए मैंने ....
अन्दर ही अन्दर
सुरंगे बनाना शुरू कर दिया है
-आनंद द्विवेदी
६ मार्च २०१२
मुझे ज्यादा देर तक ये शरीर
जवाब देंहटाएंक़ैद नही रख़ पायेगा
बाहर आने के लिए मैंने ....
अन्दर ही अन्दर
सुरंगे बनाना शुरू कर दिया है
बहुत दर्द है इन शब्दों में..
शुक्रिया संध्या जी !
हटाएंबहुत गरीब था मनहूस मर गया होगा
नाम 'आनंद' मगर दर्द की फसल था वो !!
अत्यंत भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ...आनंद भाई ...
थैंक्स दी !
हटाएंआज होली के दिन कैसे कैसे विचार मन में आ रहे हैं भाई ?
जवाब देंहटाएंबहुत भावमयी रचना ...
दीदी सादर प्रणाम !
हटाएंउम्र भर तुम भी जलो मेरी तरह
बोल कर ये सजा गयी होली !!
आनंद.....
जवाब देंहटाएंक्या लिखूं...
मार्मिक....?
भावपूर्ण....?
बहुत सुन्दर....?
अति उत्तम....?
बहुत दर्द है आपके शब्दों में...?
और भी न जाने क्या क्या.....???
अभी और भी कमेंट्स आने बाकी हैं.....
सब ऐसा ही कुछ मिल जाएगा उसी में.......!!
शब्दों में जादू है.....
और वो भी जब दिल से निकले हों सारे के सारे...
तो सीधे दिल तक पहुंचते हैं....!
अभी तो ढेर सारे दिलों की आवाज़ आप तक पहुंचानी बाकी है.....
होली मुबारक....!!
पूनम जी आपकी बात पे एक गीत की पंक्ति याद आ गई
हटाएंतुम्हीं न जब समझीं मेरे गीतों कि भाषा
दुनिया सौ सौ अर्थ लगाये क्या होता है ....
बहुत खूबसूरत भाव आनंद जी.. वाह!
जवाब देंहटाएंदीपिका जी जो भाव मन को छू जाएँ वही सुंदर !..आभार आपका !!
हटाएंमुझे ज्यादा देर तक ये शरीर
जवाब देंहटाएंक़ैद नही रख़ पायेगा
बाहर आने के लिए मैंने ....
अन्दर ही अन्दर
सुरंगे बनाना शुरू कर दिया है ..bahut hi sattik line...
थैंक्स दर्शन जी
हटाएंकुछ अलग ही दिशा में ले जाती भावभरी सुन्दर रचना... वाह!
जवाब देंहटाएंआदरणीय आनंद भाई जी... सादर बधाई..
मिश्रा जी आपके ही साथ हूँ !..ध्यान रखना :)
हटाएंरूह से रूह मिलने चलेगी तो ऐसी खूबसूरत रचनाएँ लिखी जायेंगी ही !
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण !
वाणी जी ...... क्या कहूँ बस थैंक्स !
हटाएंमारो ना मुझको तुम अपने प्यार की बातों से
जवाब देंहटाएंतुम्हारी ही जुदाई मैं में वैसे ही मरा हुआ हूँ |
वो अपनी ही मस्ती में जीती हैं घमंडी
मरे या जिए कोई उसकी बला से |......अनु
उसे घमंडी तो ना कहो अंजू जी ...नहीं तो मैं आपको थैंक्स भी नहीं बोलूँगा !
हटाएंमुझे ज्यादा देर तक ये शरीर
जवाब देंहटाएंक़ैद नही रख़ पायेगा
बाहर आने के लिए मैंने ....
अन्दर ही अन्दर
सुरंगे बनाना शुरू कर दिया है
गहन भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
सदा जी आभार आपका !
हटाएंमुझे ज्यादा देर तक ये शरीर
जवाब देंहटाएंक़ैद नही रख़ पायेगा
बाहर आने के लिए मैंने ....
अन्दर ही अन्दर
सुरंगे बनाना शुरू कर दिया है
loved it.