अमृता जी का जन्म दिन या कि 'हीर' का मेरे लिए दोनों एक ही हैं ...मेरे हाथ में 'रशीदी टिकट' भी है और 'दर्द की महक' भी इस मौके पर हरकीरत 'हीर' की ही एक नज़्म जो उन्होंने खास अमृता प्रीतम के जन्म दिन पर लिखी थी साथ में उनकी ही लिखी टिप्पड़ी , एक चित्र भी जो मेरे लिए जीवन के सबसे कीमती या यूँ कहें कि अनमोल पलों में से एक है ...
बाएँ से इमरोज़ जी हरकीरत 'हीर' जी और मैं |
उसने कहा कि अगले जन्म तू फिर आयेगी मोहब्बत का फूल लिए
वह कांटेदार झाडियों में उगा दर्द का फूल थी, जो ताउम्र गैरों के टूटे परों को अपने आँचल में समेटती रही... चूडियाँ टूटती, तो वह दर्द की गवाही बन खड़ी हो जाती... दर्द की शिद्दत कोई तभी समझ सकता है जब वह अपने बदन पर उसे झेलता है ... वह तो दर्द की मिट्टी से ही पैदा हुई थी ...रूह, जिस्म से हक माँगती तो वह चल पड़ती कलम लेकर और तमाम दर्द एक कागज़ के पुलिंदे में लपेट कर सिगरेट-सा पी जाती, और जब राख़ झाड़ती तो दर्द की कई सतरें कब्रों में उग आती ...
उन्हीं कब्रों से कुछ सतरें उठाकर लायी हूँ आज के दिन...
उन्हीं कब्रों से कुछ सतरें उठाकर लायी हूँ आज के दिन...
रात
बहुत गहरी बीत चुकी है
मैं हाथों में कलम लिए मगमूम-सी बैठी हूँ
न जाने क्यों हर साल
यह तारीख
यूँ ही
सालती है मुझे
पर तू तो
खुदा की एक इबारत थी
जिसे पढ़ना
अपने आप को
एक सुकून देना है
अंधेर मन में
बहुत कुछ तिडकता है
मन की दीवारें
नाखून कुरेदती हैं तो
बहुत सा गर्म लावा
रिसने लगता है
सामने देखती हूँ
तेरे दर्द की
बहुत सी कब्रें
खुली पड़ी हैं
मैं हाथ में शमा लिए
हर कब्र की
परिक्रमा करने लगती हूँ
अचानक
सारा के खतों पर
निगाह पड़ती है
वही सारा
जो कैद की कड़ियाँ खोलते खोलते
कई बार मरी थी
जिसकी झाँझरें कई बार
तेरी गोद में टूटी थीं
और हर बार तू
उन्हें जोड़ने की
नाकाम कोशिश करती
पर एक दिन टूटकर
बिखर गयी वो
मैं एक खत उठा लेती हूँ
और पढ़ने लगती हूँ
"मेरे बदन पे कभी परिंदे नहीं चहचहाये
मेरी साँसों का सूरज डूब रहा है
मैं आँखों में चिन दी गयी हूँ"
आह !!
कैसे जंजीरों ने चिरागों तले
मुजरा किया होगा भला ??
एक ठहरी हुई
गर्द आलूदा साँस से तो
गर्द आलूदा साँस से तो
अच्छा था
वो टूट गयी
पर उसके टूटने से
किस्से यहीं
खत्म नहीं हो जाते अमृता
जानें और कितनी सारायें हैं
जिनके खिलौने टूटकर
उनके ही पैरों में चुभते रहे हैं
मन भारी-भारी सा हो गया है
मैं उठकर खिड़की पर जा खड़ी हुई हूँ
कुछ फसले पर कोई खड़ा है
शायद साहिर है
नहीं-नहीं
यह तो इमरोज़ है
कितने रंग लिए बैठा है
स्याह रात को
मोहब्बत के रंग में रंगता
आज तेरे जन्मदिन पर
एक कतरन सुख की
तेरी झोली डाल रहा है
कुछ कतरनें और भी हैं
जिन्हें सी कर तू
अपनी नज्मों में पिरो लेती है
अपने तमाम दर्द
जब मरघट की राख़
प्रेम की गवाही माँगती है
तो तू
रख देती है
अपने तमाम दर्द
उसके कंधे पर
हमेशा-हमेशा के लिए
कई जन्मों के लिए
तभी तो इमरोज़ कहते हैं
तू मरी ही कहाँ हैं
तू तो जिंदा है
उसके सीने में
उसकी यादों में
उसकी साँसों में
और अब तो
उसकी नज़्मों में भी
तू आने लगी है
उसने कहा है
अगले जन्म में
तू फिर आयेगी
मोहब्बत का फूल लिए
जरूर आना अमृता
इमरोज़ जैसा दीवाना
कोई हुआ है भला !
*३१ अगस्त अमृता के जन्मदिन पर विशेष
सुंदर रचना......सुन्दर प्रस्तुती.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !!!! जन्मदिन की बधाइयाँ अमृता प्रीतम जी को ....
जवाब देंहटाएंलाजवाब !!!!
जवाब देंहटाएंवाह ... नि:शब्द कर दिया आपने ... जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई हीर जी को
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति ... हरकिरत हीर की नज़्में पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत शब्दों का समावेश ....हरकीरत 'हीर' जी को जन्म दिन की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंआपके स्नेह में मेरी रचना नत मस्तक है आनंद जी .....!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंजन्मदिन की ढेर सारी बधाई.....
हटाएंलेकिन बाक़ी रह गयी हमारी मिठाई.....
.......... :))
हीर जी आपके आने से मेरी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा शुक्रिया आपको !
जवाब देंहटाएंबेहतर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबेह्द उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअमृता और हीर मुझे दर्द की महक में दोनों एक सी लगी ..दोनों को आज जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई :)
जवाब देंहटाएंरंजना जी मुझे भी दोनो शख्सियतें अलहदा नहीं लगती कभी भी ..
हटाएंआभार आपका रंजना जी !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...आपके भावो को नमन आनंद भाई ...!!
जवाब देंहटाएंaapne sahi kaha dono ek si hi lagti hain hir ji bahut hi achchha likhti hai
जवाब देंहटाएंaapka bahut bahut dhnyavad
rachana
दोनों को मेरी ओर से जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक मुबारकबाद ! आपका आभार !
जवाब देंहटाएंकभी ये लगता है अब ख़त्म हो गया सब कुछ - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
जितनी बार पढूं उतनी बार मोहब्बत हो जाती है....
जवाब देंहटाएंआनंद जी शुक्रिया इस खूबसूरत पोस्ट के लिए...
आप वाकई बडभागी हैं...
सादर
अनु
मोहब्बत का फूल लिए
जवाब देंहटाएंजरूर आना अमृता
इमरोज़ जैसा दीवाना
कोई हुआ है भला !
kash aisa hi . heer ji, dil ko chhoo lene vali panktiyan, janmdin ki hardik shubhkamnaye.
सच कहूँ तो मैंने भी कुछ दिन पहले तक अमृता जी का केवल नाम ही सुना था उन्हें पढ़ने का मौका पहले कभी मुझे मिला नहीं था मगर आज मेरे हाथ में भी रसीदी टिकिट है और उसे पढ़ने के बाद उनकी रचनाओं ने मुझे भी उनके लेखन का फेन बना दिया है। :)
जवाब देंहटाएंक्या लिखूं......आप्पने जो सब लिख दिया है....
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंनेट / कम्प्यूटर की गड़बड़ियों और बाहर के चक्करों के चलते …
विलंब और अनुपस्थितियां मेरे हर प्रिय ठिकाने पर हुई है …
हो रही है …
अभी आगे भी संभावनाएं/आशंकाएं हैं …
:(
क्षमा भाव बनाए रहें …
:))
# ख़ूबसूरत पोस्ट !!
बधाइयां ही बधाइयां !!
आनंद ही आनंद !!
मंगलकामनाएं सब को …
Waah khubsurat bhon ka smavesh bahut 2 badhai
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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