इन दिनों 
नशेड़ी सपनों का 
अड्डा हो गयी हैं
चश्मे के पीछे डरी हुई दुबकी रहने वाली मेरी आँखें,
उम्र
समाज
धर्म और कर्तव्य जैसे
कई नशामुक्ति केंद्रों का चक्कर काटने के बाद
अंततः मैंने रख दिया है इन्हें 
तुम्हारी राहों पर
तुम्हारी हर आहट पर झूमने के लिए स्वतंत्र ।
© आनंद
 
 
http://bulletinofblog.blogspot.in/2017/09/blog-post_19.html
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