याद है वो दिन ?
जब तुम पहली बार आयीं थीं
मेरे दिल की दहलीज पर
जरा सा खोलकर दरवाजे का पल्ला
झाँकी भर थीं
और बाकी बनी रही थीं चौखट के बाहर ही
जितनी अंदर आयीं वो भी प्रेम नहीं..प्रश्न लेकर
जैसे पहचानने की कोशिश कर रही हो
कि क्या यही है वो दर
जहाँ मुझे हमेशा से होना चाहिए था?
जैसे पूछना चाह रही हो
कि क्या यही है वो शख्स
जिसे बरसों पहले से मेरा होना चाहिए था?
संयोग था या नियति
या फिर मिल गया था
आसरा तुम्हारे सवालों को,
ठिकाना तुम्हारी तलाश को
न जाने कैसे और कब
चौखट से बाहर ठहरे तुम्हारे हिस्से ने
तुमसे ही बगावत कर दी
जिसमें शामिल था तुम्हारा दिल भी
और बढ़ा दिया था तुमने अपना पहला कदम
मेरे मन के वीरान आँगन में
अब जबकि
मेरे सीने के सफेद बाल
मुनादी कर रहे हैं मेरे परिपक्व प्रेम की
तुम कह देती हो अक्सर
'टीनएज हो गए हो तुम बिल्कुल'
सुनो !
मत बोला करो न ऐसे
एकदम लजा जाता हूँ मैं
क्या करूँ मैं
जो अब भी
सूना रहता है मेरा संसार
तुम्हारी पायल के संगीत बिना
खुशियां रहती हैं अधूरी
तुम्हारी मुस्कान के गीत बिना
तुम नहीं होतीं तो सब कुछ रहता है आस-पास ज्यों के त्यों
केवल मैं ही नहीं रह पाता
कहीं भी चैन से !
© आनंद
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