सूरज साँझ की मुनादी कर आगे बढ़ गया
घोसलों की ओर उड़ चले पंक्षी
रसोई के धुएँ से लाल हो उठी आँखें लिए
चौखट से बाहर निहारती है एक स्त्री
जिंदगी का बोझ और फावड़ा
बाहर रख देता है पति
चौके में पाटे पर बैठा है अभावग्रस्त प्रेम
होरी और धनिया
अब नहीं बनते किसी कहानी के पात्र
देह
रोग से भरी है
देश तरक्की से
और प्रेम भरा है सूफ़ियाने से
भूख के लिए नहीं है कोई जगह
प्रेम में भी !
© आनंद
सटीक और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्रद्धांजलि : एयर मार्शल अर्जन सिंह और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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