तुम तो जानती हो
मई का महीना
मेरे लिए एकदम वैसे ही होता है
जैसे वृन्दावन वालों के लिए फागुन
जैसे ईमान वालों के लिए रमज़ान
नींद खुलते ही अज़ान के सुरों के साथ ही
घुस आती है तुम्हारी याद
तुम्हें पहले से ही दिल तक पहुँचने की हर राह मालूम है
पूजा की चौकी पर अब नहीं होती तुम
आँसू अब भी होते हैं
पर वो पागलपन के दिन ही कुछ और थे
यकीन करो मई में घंटों निहारता रहता हूँ
कैलेण्डर को चुपचाप
किसी से कहता भी नहीं अब
कि किस तारीख में क्या ख़ास है
मुझपर अब तुम्हें भूल जाने का दबाव
पहले से बहुत ज्यादा है
ऐसे में मेरे पास और क्या चारा है
सिवाय इसके
कि मैं और जोर से पकड़ लेता हूँ
तुम्हारी यादों का दामन
हर बार
एक भयभीत बच्चे की तरह !
ऐसे में
मुझे अपना एक शेर बेसाख्ता याद आता है
'हमने भी आज तक उसे भरने नहीं दिया
रिश्ता हमारा-आपका बस ज़ख्म भर का था'
_ आनंद
Ant Tak Aate-Aate Aapne Kuchh Bhi Toh Nhi Chhora Kahne Ke Lie...
जवाब देंहटाएंमाँ को याद करते हुए एक अलग ही अंदाज़ में लिखे गए मन के भाव
जवाब देंहटाएंआपने शायद नीचे का शेर नहीं पढ़ा अंजू जी यह कविता माँ के लिये नहीं है
हटाएंग़ज़ल याद आई इन पंक्तियों को पढ़ कर
जवाब देंहटाएंउम्र भर खाली मकां रहने दिया
तुम गए तो कब किसी को रहने दिया ..
न वो दिन न वो तारिख न ही वो पल्भुलाये भुलुते हैं जिस पल तुम हाथ छुड़ाकर जीवन से मुक्त हुयी और हमेशा के लिए आशीर्वाद दे गयी .....
जवाब देंहटाएंआनंद जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति ... बधाई
आशीर्वाद तो दे गयी पर जीवन से मुक्त नहीं हुई हैं ... ध्यान से पढ़िए माँ नहीं है कविता में !
हटाएंआपके ब्लॉग से मैं बहुत प्रभावित हुआ.बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,सादर आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,आभार.मैंने आपको मेल भेजा है गौर करेंगे.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दोस्तों !
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