रविवार, 12 मई 2013

मई का महीना


तुम तो जानती हो
मई का महीना
मेरे लिए एकदम वैसे ही होता है
जैसे वृन्दावन वालों के लिए फागुन
जैसे ईमान वालों के लिए रमज़ान
नींद खुलते ही अज़ान के सुरों के साथ ही
घुस आती है तुम्हारी याद
तुम्हें पहले से ही दिल तक पहुँचने की हर राह मालूम है
पूजा की चौकी पर अब नहीं होती तुम
आँसू अब भी होते हैं
पर वो पागलपन के दिन ही कुछ और थे
यकीन करो मई में घंटों निहारता रहता हूँ
कैलेण्डर को चुपचाप
किसी से कहता भी नहीं अब
कि किस तारीख में क्या ख़ास है
मुझपर अब तुम्हें भूल जाने का दबाव
पहले से बहुत ज्यादा है
ऐसे में मेरे पास और क्या चारा है
सिवाय इसके
कि मैं और जोर से पकड़ लेता हूँ
तुम्हारी यादों का दामन
हर बार
एक भयभीत बच्चे की तरह !

ऐसे में
मुझे अपना एक शेर बेसाख्ता याद आता है

'हमने भी आज तक उसे भरने नहीं दिया
रिश्ता हमारा-आपका बस ज़ख्म भर का था'

_ आनंद

9 टिप्‍पणियां:

  1. माँ को याद करते हुए एक अलग ही अंदाज़ में लिखे गए मन के भाव

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    1. आपने शायद नीचे का शेर नहीं पढ़ा अंजू जी यह कविता माँ के लिये नहीं है

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  2. ग़ज़ल याद आई इन पंक्तियों को पढ़ कर
    उम्र भर खाली मकां रहने दिया
    तुम गए तो कब किसी को रहने दिया ..

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  3. न वो दिन न वो तारिख न ही वो पल्भुलाये भुलुते हैं जिस पल तुम हाथ छुड़ाकर जीवन से मुक्त हुयी और हमेशा के लिए आशीर्वाद दे गयी .....

    आनंद जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति ... बधाई

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    1. आशीर्वाद तो दे गयी पर जीवन से मुक्त नहीं हुई हैं ... ध्यान से पढ़िए माँ नहीं है कविता में !

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  4. आपके ब्लॉग से मैं बहुत प्रभावित हुआ.बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,सादर आभार.

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,आभार.मैंने आपको मेल भेजा है गौर करेंगे.

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