गुरुवार, 16 मई 2013

मैं ज़ख्म ज़ख्म हूँ लेकिन दवा भी लाया हूँ


मैं ज़ख्म ज़ख्म हूँ लेकिन दवा भी लाया हूँ
घुटन के बीच में  ताज़ी हवा भी लाया हूँ

वो राहगीर जो तनहा चले हैं मंजिल को
उन्ही के वास्ते दिल की दुआ भी लाया हूँ

मिजाज़ सारे पता थे  मुझे चौराहों  के
बहस के वास्ते इक मुद्दआ भी लाया हूँ

तेरे गुरूर को शाबासियाँ हैं जी भर के
मुझे पसंद थी, थोड़ी हया भी लाया हूँ

तेरी हिकारतें ही अब नसीब हैं जिसका
मैं उसी शख्स की गूँगी सदा भी लाया हूँ

- आनंद 

7 टिप्‍पणियां:

  1. are waaaaaah waaaaaah poori gazal lazvab hai...
    matla to kya kheni bhot khub bhot khub

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  2. आज मेरी सुबह आनंदमई हो गई

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  3. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(18-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  4. नमस्कार आनंद जी
    बेहद खूबसूरत शब्द आपके ........

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  5. बहुत खूब! बहुत उम्दा ग़ज़ल...

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए आभार!

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