मैं ज़ख्म ज़ख्म हूँ लेकिन दवा भी लाया हूँ
घुटन के बीच में ताज़ी हवा भी लाया हूँ
वो राहगीर जो तनहा चले हैं मंजिल को
उन्ही के वास्ते दिल की दुआ भी लाया हूँ
मिजाज़ सारे पता थे मुझे चौराहों के
बहस के वास्ते इक मुद्दआ भी लाया हूँ
तेरे गुरूर को शाबासियाँ हैं जी भर के
मुझे पसंद थी, थोड़ी हया भी लाया हूँ
तेरी हिकारतें ही अब नसीब हैं जिसका
मैं उसी शख्स की गूँगी सदा भी लाया हूँ
- आनंद
are waaaaaah waaaaaah poori gazal lazvab hai...
जवाब देंहटाएंmatla to kya kheni bhot khub bhot khub
आज मेरी सुबह आनंदमई हो गई
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(18-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
नमस्कार आनंद जी
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत शब्द आपके ........
बहुत खूब! बहुत उम्दा ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए आभार!
थैंक्स फ्रेंड!
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