शनिवार, 5 मार्च 2011

वक्त का हालात का मैं हर तमाचा सह गया







प्यार की जंजीर में जकड़ा खड़ा, मैं रह गया ,
एक ही झोंके में वो प्यारा घरौंदा ढह  गया  !

एक मुद्दत बाद कल साहिल मुझे छूने को था,
एक ऊँची लहर आयी, दूर तक मैं बह गया !

अब न कोई दांव इस मासूम दिल का खेलना,
वक़्त जाते हुए मेरे कान में, यह कह गया !

एक सपना था, कि कोई आंसुओं की बूंद थी ? 
जो भी था वो आँख में ही झिलमिलाता रह गया !

घर हमारा है मगर, दीवारें औरों की हुयीं ,
एक बड़ा प्यारा अजनबी चंद रातें रह गया !

पहले जब हालात इतने तंगदिल कातिल न थे,
'प्यार करता हूँ तुम्हे' मैं भी किसी से कह गया!

टूट जाता कभी का, लेकिन वफ़ा के नाम पर  ,
वक़्त का हालात का, मैं हर तमाचा सह गया  !!

     --आनंद द्विवेदी ०१/०५/२००८ 

7 टिप्‍पणियां:

  1. 'एक मुद्दत बाद कल साहिल मुझे छूने को था

    एक ऊँची लहर आई दूर तक मैं बह गया '



    बहुत सुन्दर शेर द्विवेदी जी ......यही तो जिंदगी की जद्दोजहद है

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  2. शुक्रिया सुरेन्द्र भाई !

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  3. घर हमारा है मगर, दीवारें औरों की हुयीं ,
    एक बड़ा प्यारा अजनबी चंद रातें रह गया
    बहुत सुन्दर शेर...

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  4. जिंदगी की जद्दोजहद यही है|
    बहुत सुन्दर| धन्यवाद|

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  5. टूट जाता कभी का, लेकिन वफ़ा के नाम पर ,
    वक़्त का हालात का, मैं हर तमाचा सह गया !!

    very nice.

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