शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

डॉट्स . . . की भाषा !



कभी कभी 
सारा अध्यन ...सारी शिक्षा,
हर किताब 
हर सीख ....और
तुम्हारी समझायी हर बात पर
भारी पड़ जाता है मेरा दर्द, 
और ऐसे क्षणों में फिर मैं 
कर बैठता हूँ .....
तुमको एक  'एस एम एस'
जिसमे लिखा होता है केवल एक नाम 
और कुछ डॉट्स. . . बस !

अच्छे से जानता हूँ कि
तुम्हारे निजी संसार में
मेरा इस तरह
रह रह कर जिन्दा होना
तुम्हें जरा भी पसंद नही
पर क्या करूं ?
मैं ये भी तो अच्छी तरह से जानता हूँ ...कि 
सारी दुनिया में केवल
एक तुम्हें ही
उन डॉट्स . . . की भाषा पढ़नी आती है !

"मैं आज भी वहीँ हूँ "
मेरे लिए यह कथन ...
न पूरा सच है न पूरा झूठ
धरती का गुरुत्वाकर्षण 
कुछ तो कमजोर पड़ा है 
अब वह सिमटकर
केवल उतना भर रह गया है
जितनी कि तुम स्वयं
और जिस किसी भी दिन
तुम नही रहोगी ........
मैं झट से 
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से बाहर चला जाऊंगा
पर
एक बात बोलूं
मेरी जरा भी दिलचस्पी 
न तो निराकार में है 
और न मोक्ष में
मैं तो सृष्टि के अंत तक चलता रहना चाहता हूँ
एक तुम्हारी सुगंध भर लिए हुए
जिससे सुवासित है
मेरी आत्मा .... 
और 
मेरे आने वाले अनेक जन्म !!

आनंद
०६-०४-२०१२  

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

इक जिस्म रह गया हूँ महज




अब मैं किसी के प्यार के काबिल नहीं रहा, 
इक जिस्म रह गया हूँ महज, दिल नहीं रहा |

कैसे गुमान होता मुझे अपने क़त्ल का, 
जब मैं किसी के ख़्वाब का क़ातिल नही रहा |

जब से किसी ने मुझको तराजू पे रख़ दिया,
अय जिंदगी, मैं तेरे  मुक़ाबिल  नही रहा  |

मँझधार ही नसीब है,  या पार लगूंगा ?
हद्दे निगाह तक कोई साहिल नही रहा |

दुनिया के तकाज़े हैं, खुदगर्ज़ हुआ जाये,
बस एक यही मसला मुश्किल नही रहा |

'आनंद' मिट गया औ भनक भी नही लगी,
पहले तो मैं इतना कभी गाफ़िल नहीं रहा  !

आनंद द्विवेदी 
३० मार्च २०१२ 

सोमवार, 26 मार्च 2012

एक माँ का दर्द



एक 

माधव !
तुमने किसी माँ को 
रोते हुए देखा है ....
तुमको कैसा लगता है ?
मुझे तो अच्छा नहीं लगता
तुम्हारी नहीं कह सकता मैं 
अच्छा छोड़ो ..
ये बताओ 
क्या तुमने किसी बेटी को 
रोते हुए देखा है ?
मैंने तो देखा है
तुमने भी जरूर देखा होगा
क्योंकि कई बार
मुझे भी ऐसा लगता है  कि ..
तुम ही सबके पिता हो
परम पिता !
न जाने क्यों ऐसा लगता है मुझे 
और खास बात ये कि.... मैंने 
जब जब उसे रोते हुए देखा 
तब तब 
मैंने तुमको भी देखा 
हम दोनों लाचार
वैसे एक राज की बात बताऊँ ??
जब जब मैं तुमको लाचार देखता हूँ ना 
मेरा मन करता है कि 
मैं  जोर जोर से नाचूँ...........!


दो 

मैं सुदामा नहीं हूँ !
और मुझे ऐसा कोई मुगालता भी नहीं है 
फिर भी 
एक पोटली है मेरे पास ...
अरे कांख में दबी हुई नहीं 
इधर सर पे रखी हुई ...
मेरी पोटली में
बहुत सारी चीजें हैं ...जो तुमने
दिया था मुझे
देखो ना 
इसमें है ...
नदी किनारे की एक जादुई शाम
तपते जून की एक दोपहर
तारों भरी  कुछ सर्द रातें (जब चाँद भी अच्छा लगता था )
दीवानों की तरह घुमड़े हुए कुछ बादल 
बच्चों की तरह भीगता
और 
पागलों की तरह खुश होता हुआ मैं !
मेरा वो इंतज़ार
(अब जिसके आगे तुमने 'मूक' और पीछे 'अनंत काल के लिए' लिख दिया है )
देखना ...
एक छोटी सी गांठ में बंधा हुआ 
थोड़ा सा 
भरोसा भी होगा ...
इनमे से एक भी चीज़ 
मेरे काम की नहीं है 
इन्हें वापस ले लो (तुभ्यमेव समर्पयामि)
इन सबके बदले में
मुझे एक चीज़ चाहिए 
और वो ये कि.... 
मुझे अब कुछ नहीं चाहिए
हो सके तो  
मुझे मुक्त करो अब 
नहीं तो जय राम जी की !

आनंद 
२६-०३-२०१२ 

रविवार, 18 मार्च 2012

दो चार रोज ही तो मैं तेरे शहर का था



दो चार रोज ही तो मैं तेरे शहर का था,
वरना तमाम उम्र तो मैं भी सफ़र का था |

जब भी मिला कोई न कोई चोट दे गया,
बंदा वो यकीनन बड़े पक्के जिगर का था |

हमने भी आज तक उसे भरने नहीं दिया,
रिश्ता हमारा आपका बस ज़ख्म भर का था |

तेरे उसूल,  तेरे  फैसले ,   तेरा  निजाम ,
मैं किससे उज्र करता, कौन मेरे घर का था |

जन्नत में भी कहाँ सुकून मिल सका मुझे,
ओहदे पे वहाँ भी, कोई...तेरे असर का था |

मंजिल पे पहुँचने की तुझे लाख दुआएं,
'आनंद' बस पड़ाव तेरी रहगुज़र का था |

-आनंद द्विवेदी
१८ मार्च २०१२


बुधवार, 14 मार्च 2012

मैं जिंदगी की चोट का ताज़ा निशान हूँ..




ना ही कोई  दरख़्त  हूँ  न  सायबान हूँ
बस्ती से जरा दूर का तनहा  मकान हूँ

चाहे जिधर से देखिये बदशक्ल लगूंगा
मैं जिंदगी की चोट का ताज़ा निशान हूँ

कैसे कहूं कि मेरा तवक्को करो जनाब
मैं खुद किसी गवाह का पलटा बयान हूँ

आँखों के सामने ही मेरा क़त्ल हो गया
मुझको यकीन था मैं बड़ा सावधान हूँ

तेरी नसीहतों का असर है या खौफ है
मुंह में  जुबान भी है,  मगर बेजुबान हूँ

बोई फसल ख़ुशी की ग़म कैसे लहलहाए
या तू खुदा है, या मैं अनाड़ी किसान हूँ

इक बार आके देख तो 'आनंद' का हुनर
बे-पंख  परिंदों का नया  आसमान हूँ  !!

-आनंद द्विवेदी
८ मार्च २०१२