शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

मेरा उठना... मेरा बैठना




मेरा उठना
मेरा बैठना 
मेरा बोलना
मेरी मौन 
मेरा हंसना 
मेरा रोना 
सब
तेरी ही तो अभिव्क्ति है
मेरा सारा जीवन
तेरा ही एक गीत है माधव !
इसे मैं जितना
शांत
और शांत होकर सुनता हूँ
तू उतना ही मेरे अंदर
गहरे
और गहरे
नाचने लगता है !!

लोग कहते हैं ....कि
तू
बहुत विराट है ,
"रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्माण्ड "
उफ्फ्फ
मैं तो डर ही जाऊंगा
मेरे से
इतना कहाँ संभलेगा
वैसे भी
मुझे इस तरह कि बातें
जरा भी अच्छी नहीं लगती
मैं जानता हूँ .... कि मैं
तुझे समझ नहीं सकता
(समझना चाहता भी नहीं )
पर मैं
तुझे जी सकता हूँ
जी रहा हूँ मैं
तुझे  !


इधर देख ... वैसे ही प्यार भर कर
और  कर दे ...पागल
अब होश में रहने का
जरा भी मन नहीं !

-आनंद द्विवेदी ९/१२/२०११

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

आ जिंदगी तू आज मेरा कर हिसाब कर ..



आ जिंदगी तू आज मेरा कर हिसाब कर
या हर जबाब दे मुझे  या लाजबाब कर 

मैं  इश्क  करूंगा  हज़ार  बार करूंगा
तू जितना कर सके मेरा खाना खराब कर

या छीन  ले नज़र कि कोई ख्वाब न पालूं
या एक काम कर कि मेरा सच ये ख्वाब कर

या मयकशी से मेरा कोई वास्ता न रख
या ऐसा नशा दे कि मुझे ही शराब कर 

जा चाँद से कह दे कि मेरी छत से न गुजरे
या फिर उसे मेरी नज़र का माहताब कर

क्या जख्म था ये चाक जिगर कैसे बच गया  
कर वक़्त की कटार पर तू और आब कर

खारों पे ही खिला किये है गुल, ये सच है तो
'आनंद' के ग़मों को ही तू अब  गुलाब कर  |

-आनंद द्विवेदी २९-११-२०११

सोमवार, 28 नवंबर 2011

इतना काफी है एक उम्र बिताने के लिए



दौर-ए-गर्दिश में मुझे राह दिखाने के लिए
शुक्रिया आपका हर साथ निभाने के लिए

जिंदगी लौट के आया हूँ अंजुमन में तेरे
अब किसी गैर के कूचे में न जाने के लिए

बेरहम वक़्त से उम्मीद भला क्या करना
खुद ही जलना है यहाँ शम्मा जलाने के लिए

कसमे वादे, हसीन ख्वाब और रंज-ओ-ग़म
छोड़ आया हूँ मैं, ये काम जमाने के लिए

एक बेनाम सा अहसास और एक कसक
इतना काफी है एक  उम्र बिताने के लिए

थोड़े यादों के फूल थे,  जो बचा रक्खे थे
ये भी ले जाता हूँ मंदिर में चढ़ाने के लिये

साथ  'आनंद' का  अब  कौन भला चाहेगा
हाथ में कुछ नहीं दुनिया को दिखाने के लिए

-आनंद द्विवेदी २७/११/२०११

शनिवार, 26 नवंबर 2011

हे राधा माधव हे कुञ्जबिहारी !



हे वृषभान नंदिनी !
लोग कहते हैं
आप और वो
एक ही हैं
एक दूसरे में समाये हुए
अपृथक
ऐसा है तो
आप को तो सब पता ही होगा न
मुझ पर करुणा कर माँ
एक बार ...बस एक बार
बोल उनको
निहार लें उसी बांकी चितवन से
जिससे नज़रें मिलने के बाद
और सब कुछ
भूल जाता है फिर !



और माधव !
तुम
शरणागत को
कैसे डील करते हो यार  ?
"सर्व धर्मान परित्यज्य
मामेकं शरणं ब्रज "
बस बातें लेलो 'तेरह सौ की'
छुड़ाओ न सब ...
मेरे बस का होता तो
क्यों चिरौरी करता
बार बार तुमसे ...

वैसे एक बात बोलूं
तुम्हारी आँखों में न
काजल बहुत जमता है
मैं तो
जब भी देखता हूँ न
सेंटी हो जाता हूँ  !!  :) :)

२६/११/२०११

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

रंग दे ..छलिया !

अब ... जब तक हमारे बीच से शब्द एकदम ख़तम नहीं हो जाते..... ये "तू तू मैं मैं" तो चलती ही रहेगी यही सोंच कर आज से इस सीरीज की शुरुआत कर रहा हूँ ....केवल अपने लिए है यह ..अगर इस जन्म में पा लिया उन्हें तो कोई और पढ़ेगा ये मीठी यादें ..और अभी कई और जन्म लेने पड़े तो मैं फिर लौट कर आऊंगा और पढूंगा इन सब कवितों को एक बार फिर .......

रंग दे ..छलिया !

जैसा
तेरा नाम है न
वैसा ही
तेरा रंग !
और जब तू पीला-पीला
पीताम्बर पहनता है ना
बाई गाड
दूर से ही चमकता है |
यार तुझे भी ना
जरा भी ड्रेस सेन्स  नहीं है ...
ऊपर से ये
'बरसाने वाली'...
ध्यान ही नहीं रखती
किसी बात का !!

सर्दियाँ आ गयी हैं
अब तू
थोडा टाइम दे
तो
सीख लूं मैं
स्वेटर बुनना
अपनी पसंद के सारे रंग
बुन दूं मैं
तेरे लिए
तू पहनेगा ना ..
मेरा बुना हुआ झगोला ..?

अरे सुन !
तुझे वो गाना आता है क्या ..
'रंगरेज़ा.. .रंगरेज़ा'  वाला
बजा रे... बजा ना एक बार
देखूं  बांसुरी पर ..
कैसा लगता है
रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन 
ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन ......

रंग दे छलिया
क्यों तड़पाता है अब  !!

२४-११-२०११