गुरुवार, 11 अगस्त 2011

रस्म-ए-उल्फत निभा के देख लिया










रस्म-ए-उल्फत निभा के देख लिया
हमने भी   दिल लगा के देख लिया

सुनते आये थे आग का दरिया
खुद जले, दिल जला के देख लिया

उनकी दुनिया में उनकी महफ़िल में
एक दिन,   हमने जाके देख लिया

दर्द भी,  कम हसीँ  नही  होते
बे-सबब मुस्करा के देख लिया

उनका हर जुल्म, प्यार होता है
चोट पर चोट खा के देख लिया

इश्क ही अब है बंदगी अपनी
उनको यजदां बना के देख लिया

उनको 'आनंद' ही नही आया
हमने खुद को मिटा के देख लिया

यजदां = खुदा

आनंद द्विवेदी ७/०८/२०११

बुधवार, 10 अगस्त 2011

उनसे भी मेरा प्यार छुपाया ना जायेगा



मुझसे तो खैर होश में आया ना जायेगा
उनसे भी मेरा प्यार छुपाया ना जायेगा

चेहरा मेरा किताब है पढ़ लेना इसे तुम
मुझसे यूँ हाले दिल तो बताया न जाएगा

तुम आ गये जो याद तो जलते ही रहेंगे
मुझसे कोई चिराग बुझाया ना जाएगा

इस बार गर मिलो तो जरा एहतियात से
अब जख्म नया मुझसे भी खाया न जाएगा

सपना नहीं किसी का इक बूँद अश्क हूँ मैं
नज़रों से गिर गया तो उठाया न जाएगा

खामोश हसरतें हैं, कि तू कह दे इक दफा
गैरों को कभी बीच में लाया न जाएगा

जालिम सितम किये जा, पर ये भी ख्याल रख़
'आनंद' मिट गया तो बनाया न जाएगा

  -आनंद द्विवेदी ४/०८/२०११

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

कितनी मुश्किल से मिला है यार का कूचा मुझे



यार की महफ़िल है यारों राज़ की बातें करो
ऐसे मौकों पर निगाहे नाज़ की बातें करो

कितनी मुश्किल से मिला है यार का कूचा मुझे
भूल कर अंजाम, बस आगाज़ की बातें करों

मुझको आदत पड़ गयी है आसमां की ,चाँद की
पंख की बातें करो , परवाज़ की बातें करो

डूब जाओ इश्क में तुम, भूल कर दुनिया के गम
हुस्न की बातें करो , अंदाज़ की बातें करों

ज़िन्दगी को गीत जैसा , गुनगुनाना हो अगर
साज़-ए-दिल पर बज उठी आवाज़ की बातें करो

आज कल 'आनंद' को कुछ तो हुआ है दोस्तों
आँख भर आती है गर हमराज़ की बातें करो

   -आनंद द्विवेदी ०३-०८-२०११

रविवार, 7 अगस्त 2011

मई की क्रांति


तुम ..

तुम
कैसा अहसास हो
जहाँ मन ऐसे लगता है जैसे
समाधि
या फिर कोई नशा
जिसे पीकर कभी भी
होश में आने का मन न हो ..
या फिर कोई जहर
जिसे पीकर हमेशा के लिए
मेरी मौत हो गई है
खुद के अन्दर
और तुम बन बैठे हो
अहिस्ता से
मेरा वजूद !

मैं 

मैं
वो हूँ ही नही
जो मुझे सभी
समझते हैं
जानते हैं
मैं केवल वो हूँ
जो तुम समझती हो
जानती हो
मानती हो
वही हूँ मैं
वही हो गया हूँ  !!


मई की क्रांति 


मेरे लिए
उसका प्यार
उस
क्रांति से भी ज्यादा है...
सत्ता और व्यवस्था की छोड़ो
मेरा तो
जीन बदल गया है
अब
कई जन्मों तक
मैं
केवल प्रेम को ही
जन्म दूंगा ||

समझदार !

बड़ी जतन से
बर्षों में
तैयार होता है
एक
समझदार आदमी !
अन्दर की कोशिकाओं तक
निर्माण होता है 'मैं' का 'अहम्' का
कहना आसान है
मिटाना कठिन ....
लगभग आत्महत्या जैसा
इसीलिये
समझदार आदमी
हमेशा दूर भागते हैं
प्रेम से ||

प्रेम

गली गली में
उग आये है
उपदेशक !
चरणबद्ध तरीके से
सिखाया जाएगा
त्रुटिहीन  प्रेम ||


शबरी की कथा  !

कह दो
अंतिम क्षण में
साथ  रहने के लिए
या फिर मैं
तुम्हारे साथ के क्षण को ही
अंतिम बना लूं
कानों के ऊपर के
सफ़ेद बाल
सारे शरीर में फ़ैल रहे हैं
ऐसे में  मुझे
'शबरी' की कथा
बहुत याद आती है  !!

छोटे लोग !

कितनी
रंगीन महफ़िल थी यार !
शायरी और शबाब का दौर..
मगर इसमें भी
'उस' साले ने
आलू, प्याज
रसोई गैस के बढ़े दाम ....घुसेड़ दिए
उफ्फ्फ
ये छोटे लोग न
कभी बड़ा
सोंच ही नही सकते ||

आनन्द द्विवेदी १४-०७-२०११

मेरा सच !


जैसे पानी का एक बुलबुला  ....
सपना तो
बिलकुल भी नहीं था
था तो हकीकत ही ...
मगर
इन  कमबख्त बुलबुलों की
उम्र ही कितनी होती है
कुछ तो आवाज़  भी नहीं करते ....
मेरा प्यार....
खामोश  बुलबुला  तो नहीं था न ?

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लगता ही नही
मैंने
जन्नत नही देखी
याकि मैं
इस धरती का
रहने वाला हूँ,
तुमको पाकर
लगता ही नही
कि
मुझमे कुछ कमी है  !



आनन्द द्विवेदी १३-१४/०७/२०११