गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

सोच समझकर करना



किसी को प्यार करो सोंच समझकर करना
दिल-ए-बेजार करो, सोच समझकर करना 

इश्क सुनता है भला कब नसीहतें किसकी
हज़ार बार करो,   सोच समझ कर करना  

एक लम्हा है जो गुजरा तो फिर न आएगा 
जो इंतजार करो,   सोच समझ कर करना   

प्यार की हद से गुजरने की बात करते हो 
हदें  जो पार करो, सोच समझ कर करना  

जानलेवा तेरी नज़रों को,   लोग कहते हैं 
जो कोई  वार करो,  सोच समझ कर करना  

मैंने 'आनंद' के देखे हैं,   अनगिनत चेहरे 
जो ऐतबार करो , सोच समझ कर करना  

        --आनंद द्विवेदी २८-०४-२०११

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

कोई शिकवा ही नहीं उसको मुकद्दर के लिये




दो घड़ी भी न मयस्सर हुई ,.. बसर के लिए 
ख्वाब लेकर के मैं आया था उम्र भर के लिए !

कौन जाने कहाँ से, ...  राह दिखादे  दे कोई,
रोज बन-ठन के निकलता हूँ तेरे दर के लिए !

तेरी महफ़िल को,  उजालों की दुआ देता हूँ , 
मैं ही  माकूल नहीं हूँ, ....तेरे शहर के लिए  !

रास्ते  भर,   तेरी यादें ही  काम  आनी  हैं ,
घर में माँ होती तो देती भी कुछ सफ़र के लिए !

दिल को समझाना भी मुस्किल का सबब होता है 
आज फिर जोर से धड़का है  इक नज़र के लिए  !

सिर्फ अहसास  नहीं  हूँ,  वजूद  है  मेरा  ,
मैं बड़े काम का बंदा हूँ किसी घर के लिए  !

अजीब शख्स है 'आनंद', ...फकीरों की तरह ,
कोई शिकवा ही नहीं  उसको मुकद्दर के लिए !

    ---आनंद द्विवेदी २५-०४-२०११

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

ख़त लिख रहा हूँ तुमको.....



न दर्द,   ... न दुनिया के सरोकार लिखूंगा,
ख़त लिख रहा हूँ तुमको, सिर्फ प्यार लिखूंगा !

तुम गुनगुना सको जिसे , वो गीत लिखूंगा ,
हर ख्वाब लिखूंगा,  .. हर ऐतबार लिखूंगा  !

पत्थर को  भी भगवान,  बनाते रहे हैं जो , 
वो भाव ही लिक्खूंगा , वही प्यार लिखूंगा !  

दुनिया से छिपा लूँगा, तुम्हें कुछ न कहूँगा ,
गर नाम भी लूँगा, तो  'यादगार' लिखूंगा  !

सौ चाँद भी देखूं जो,   तुझे देखने के बाद ,
मैं एक - एक  कर, ...उन्हें बेकार लिखूंगा !

अपने लिए भी सोंचना है मुझको कुछ अभी,
'आनंद' लिखूंगा,... या  अदाकार  लिखूंगा  !

     --आनंद द्विवेदी , २३-०४-२०११

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

रह रह के अपनी हद से गुजरने लगा हूँ मैं






बेख़ौफ़ होके, .. सजने संवरने लगा हूँ मैं,
जब से तेरी गली से गुजरने लगा हूँ मैं !

कुछ काम, जो सच्चाइयों को नागवार थे ,
वो झूठ बोल बोल कर, करने लगा हूँ मैं  !

गज़लों में आगया कोई सोंचों से निकल कर,
शेर-ओ-शुखन से प्यार सा करने लगा हूँ मैं !

वो एक नज़र हाय क्या वो एक नज़र थी ,
रह रह के अपनी हद से गुजरने लगा हूँ मैं!

मुझको  कोई पहचान न बैठे  , इसी डर से  ,
अब गाँव को भी,  शहर सा करने लगा हूँ मैं !

'आनंद' फंस गया है,  फरिश्तों के फेर में ,
अब जाँच परख खुद की भी करने लगा हूँ मैं! 

   --आनंद द्विवेदी  २२-०४-२०११ 

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

वादा कर लूँगा मगर साफ़ मुकर जाऊँगा






तेरे नजदीक से होकर..... जो गुजर जाऊँगा ,
कह नहीं सकता जियूँगा, कि मैं मर  जाऊंगा !

उनका आगाज़ ही लगता है क़यामत मुझको, 
उनको डर था कि मैं,  अंजाम से डर जाऊँगा  !

मुझको मयख्वार बनाती हुई, नज़रों वाले ..,
मैक़दे बंद ना  करना  , मैं  किधर जाऊँगा  !

तेरे दर से मुझे ,  .मंजिल का गुमाँ होता है ,
मैं जरा देर भी ठहरा,... तो ठहर जाऊँगा  !

इक  हसीं ख्वाब के जैसा,  वजूद है मेरा ,
दो घडी पलकों पे रह लूँगा उतर  जाऊँगा !

मुझपे 'आनंद' की सोहबत का असर है यारों,
वादा कर लूँगा मगर,  साफ़ मुकर जाऊँगा !!

   ---आनंद द्विवेदी १८-०४-२०११