शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

रह रह के अपनी हद से गुजरने लगा हूँ मैं






बेख़ौफ़ होके, .. सजने संवरने लगा हूँ मैं,
जब से तेरी गली से गुजरने लगा हूँ मैं !

कुछ काम, जो सच्चाइयों को नागवार थे ,
वो झूठ बोल बोल कर, करने लगा हूँ मैं  !

गज़लों में आगया कोई सोंचों से निकल कर,
शेर-ओ-शुखन से प्यार सा करने लगा हूँ मैं !

वो एक नज़र हाय क्या वो एक नज़र थी ,
रह रह के अपनी हद से गुजरने लगा हूँ मैं!

मुझको  कोई पहचान न बैठे  , इसी डर से  ,
अब गाँव को भी,  शहर सा करने लगा हूँ मैं !

'आनंद' फंस गया है,  फरिश्तों के फेर में ,
अब जाँच परख खुद की भी करने लगा हूँ मैं! 

   --आनंद द्विवेदी  २२-०४-२०११ 

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

वादा कर लूँगा मगर साफ़ मुकर जाऊँगा






तेरे नजदीक से होकर..... जो गुजर जाऊँगा ,
कह नहीं सकता जियूँगा, कि मैं मर  जाऊंगा !

उनका आगाज़ ही लगता है क़यामत मुझको, 
उनको डर था कि मैं,  अंजाम से डर जाऊँगा  !

मुझको मयख्वार बनाती हुई, नज़रों वाले ..,
मैक़दे बंद ना  करना  , मैं  किधर जाऊँगा  !

तेरे दर से मुझे ,  .मंजिल का गुमाँ होता है ,
मैं जरा देर भी ठहरा,... तो ठहर जाऊँगा  !

इक  हसीं ख्वाब के जैसा,  वजूद है मेरा ,
दो घडी पलकों पे रह लूँगा उतर  जाऊँगा !

मुझपे 'आनंद' की सोहबत का असर है यारों,
वादा कर लूँगा मगर,  साफ़ मुकर जाऊँगा !!

   ---आनंद द्विवेदी १८-०४-२०११ 

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

इन प्यार की बातों से...




मेरे यार की बातों से, इजहार  की बातों से ,
हंगामा तो होना था, इन प्यार की बातों से !

मैं वो ग़मजदा नहीं हूँ  हैरत न करो यारों,
मैं जरा बदल गया हूँ , इकरार की बातों से !

वो उदास सर्द लम्हे, तनहाई ग़म की किस्से,
मेरा लेना देना क्या है,  बेकार की बातों से !

वो कशिश वो शोखियाँ वो, अंदाजे हुश्न उनका 
फुरसत कहाँ है मुझको , सरकार की बातों से  !

मेरी धडकनों पे काबिज ..मेरी रूह के सिकंदर,
मेरा दम निकल न जाए, इनकार की बातों से !

तेरा  रह गुजर नहीं हूँ,  ...ये  खूब जानता  हूँ
तेरे साथ चल पड़ा हूँ , ..ऐतबार की बातों से  !

'आनंद' मयकदे तक पहुंचा तो कैसे पंहुचा ? 
ये राज खुल न जाए,   तकरार की बातों से !

   --आनंद द्विवेदी १६-०४-२०११ 

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

ठहरो चाँद ....!




बरसों बाद 
मेरी खिड़की  पर 
आज 
चाँद आकर ठहर गया है
हू-ब-हू  वही चाँद 
वही नाक नक्श, वही चांदनी 
बादलों की ओट में 
वही लुका छिपी  
वही शरारतें ..

इस बार नहीं जाने दूंगा ..
नहीं करूंगा 
रत्ती भर संकोच
बाँहों में भर लूँगा
हर कतरा
चांदनी....तुम्हारी!    

इतने दिन 
कहाँ थे तुम ?
तुम्हें 
मेरे गीत पसंद थे न  
देखो 
मैंने कितने गीत लिखे है
इनका हर लफ्ज़  
कितना तुम्हारा है 
आज सुनाऊंगा तुम्हें 
कम से कम 
एक गीत  मैं !

आज पूनम है 
खूब सारा वक़्त है न तुम्हारे पास 
अब से पहले 
न कभी 
ऐसी पूनम आई 
न कभी 
ऐसा वक़्त 
आज रुकोगे न तुम?
जल्दी मत करना 
आज ही 
जी लेनी है मुझे... 
अपनी सारी उम्र 
मुझे कल पर 
जरा भी ऐतबार नहीं !!

-आनंद द्विवेदी 
१५-०३-२०११

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

उफ्फ् फिर सपने ...



सुबह से.. 
एक सादा पन्ना 
नाच रहा है 
आँखों के सामने
रात में
इसी पर मैंने 
रंग बिरंगी स्याही से
सब कुछ तो लिख दिया था ...

मैंने लिखा था 
तुम्हारी मुस्कान 
तुम्हारी शराफत 
तुम्हारा प्यार 
तुम्हारी लापरवाही 
तुम्हारी इबादत 
तुमको 

मैंने लिखा था 
अपनी आरजू 
अपनी गिड़गिड़ाहटें  
अपनी बेबसी ... 
अपना जुजून 
वो भी सब 
जो आज तक मैंने
तुमको नहीं बताया था 
खुद से भी ..
चुराए हुए था जो राज ...

पर सुबह...
देखा तो... 
पन्ना तो सादा ही था ..

निगोड़े सपने 
रात में भी  तंग करते हैं 
और दिन में भी !

-आनंद द्विवेदी  
अप्रैल १४, २०११