गुरुवार, 26 जनवरी 2017

अपना दर्द किनारे रख.

जितना संभव टारे रख
अपना दर्द किनारे रख

दिखता है सो बिकता है
बाहर जीभ निकारे रख

अंदर केवल जय जय है
अपने प्रश्न दुआरे रख

अंदर अंदर भोंक छुरी
ऊपर से पुचकारे रख

अच्छा मौसम आयेगा
यूँ ही राह निहारे रख

बे परवाह न हो कुर्सी
सत्ता को ललकारे रख

दुनिया कुछ तो बदलेगी
पत्थर पे सर मारे रख

जीवन में आनंद न हो
तो भी खीस निकारे रख

- आनंद

3 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन ही आनंद बने
    उसको बना सहारे रख

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  2. खोखली उम्मीदों से भरी आज-कल की खोखले समाज में में जीने को मजबूर है ज़िन्दगी। सुंदर रचना आनंद जी।

    मेरी पोस्ट का लिंक :
    http://rakeshkirachanay.blogspot.in/

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