शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

चलते फिरते काम बिगाड़े बैठे हैं

चलते फिरते काम बिगाड़े बैठे हैं
हम तो दिल की बाजी हारे बैठे हैं

उसकी मर्ज़ी जैसा चाहे रक्खे वो
सर से सारा बोझ उतारे बैठे हैं

संकोची उम्मीदें मेरी, ले आयीं
उसके दर तक, मगर दुआरे बैठे हैं

मेरा पैमाना, साकी भर ही  देगा
इस हसरत में एक किनारे बैठे हैं

अब तो बदला सा लगता है मौसम भी
हम भी केंचुल आज उतारे बैठे हैं

सदियों की तन्हाई शायद  टूटेगी
अबतक सारे जख्म संभारे बैठे हैं

हम 'आनंद' नहीं हैं उसका धोखा हैं 
पहले ही किस्मत के मारे बैठे हैं

- आनंद 

रविवार, 21 जुलाई 2013

बचे हुए ख़्वाब

भूल गया हूँ अब
कैसे देखा था पहली बार तुम्हें
और क्या देखा था
क्या कहा था तुमसे और क्यों कहा था
बहुत जोर डालने पर भी याद नहीं आता
कि देखे हुए अनगिनत ख्वाबों में से
कितने टूटे
कितने बचे
मोटा मोटा अनुमान है कि वो सब टूट गए
जिन्हें
हकीकत होना था
बच वो रहे हैं
जिन्हें
सिर्फ ख्वाब रहना था ...!

- आनंद 

शनिवार, 20 जुलाई 2013

अपने तमाम जख्म छुपाते हुए मिला

अपने तमाम ज़ख्म छुपाते हुए मिला
इक शख्स मुझे 'दूर से' जाते हुए मिला

तेरा शहर तो खूब है मंजिल से राब्ता
जो भी मिला वो राह बताते हुए मिला

अब तक मेरे हबीब की आदत नहीं गयी
पहले की तरह ख़्वाब दिखाते हुए मिला 

उम्मीद के झोले में भरे ग़म की पोटली
कोई शहर में गाँव से आते हुए मिला

ग़म की फिकर करूँ या रंज़ यार का करूँ  
दुश्मन का काम दोस्त निभाते हुए मिला  

'आनंद' को जीने का सलीका नहीं आया   
जब भी मिला वो चोट ही खाते हुए मिला 

- आनंद 


शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

मेरा जब फाकों का मौसम...

मेरा जब फाकों का मौसम, उनका है त्योहारों का
मेरा रुख है गाँव-गली का, उनका है बाजारों का

देश चलाने वाले हाकिम, जनगणना करवा लेंगे
एक अनार रहेगा भाई, अब  हजार बीमारों का

पैसे की ताकत भी देखी, मुफ़लिस की मजबूरी भी
कलुवा की बेटी ने देखा, गुस्सा इज्ज़तदारों का

किसके हाथों में बंदूकें, किसके सीने में गोली
चाहे जिसका भी घर उजड़े, काम सियासतदारों का    

इसे हलफ़नामा ही समझो, वैसे ये ख़ामोशी है
दिल के जख्मों से लेना है काम मुझे अंगारों का

वैसे तो 'आनंद' बहुत है, मीठी मीठी बातों में
लेकिन अब लिखना ही होगा किस्सा अत्याचारों का

- आनंद



शनिवार, 29 जून 2013

गली गली मंदिर मस्जिद हैं

गली गली मंदिर मस्जिद हैं  गली गली मैख़ाने हैं
फिर भी कितनी तन्हाई है फिर भी दिल वीराने हैं

तेरा शहर भला है हमको, रुसवाई तो मिलती है
मेरी नगरी की मत पूछो, अपने भी बेगाने हैं

दिल भी और ज़ख्म मांगे है हम भी खाली खाली हैं
आँसू, ख़ामोशी, बेचैनी, ये सब  तो पहचाने हैं

फिर इक बार मिलें तो जानें दुनिया कितनी बदली है
वरना तेरे पत्थर दिल के  किस्से ही तो गाने हैं

क्या होता है दिलवालों को क्या से क्या हो जाते हैं
क्यों दिल में आकर बसते हैं जब दुश्मन हो जाने हैं

यारों के अहसान बहुत हैं, इस छोटे से जीवन पर
कुछ का जीकर कुछ का मरकर, सारे कर्ज चुकाने हैं

- आनंद