रविवार, 19 मई 2013

जब से मैं किसी राह का पत्थर नहीं रहा

जब से मैं किसी राह का पत्थर नहीं रहा
मुझको भी ठोकरों का कोई डर नहीं रहा

घर का भी कोई वास्ता दिल से जरूर था
देखो न, मेरा घर भी मेरा घर नहीं रहा

दैरो-हरम बनाये, जिसने महल बनाये
उनके सरों पे ठीक से छप्पर नहीं रहा

इंसान ने  इंसान का ये  हाल किया  है
शैतान से ऐसा तो कभी डर नहीं रहा

हँस हँस के जी रहा हो या रो रो के जिए वो
'आनंद' मगर तय है, अभी मर नहीं रहा

 - आनंद


गुरुवार, 16 मई 2013

मैं ज़ख्म ज़ख्म हूँ लेकिन दवा भी लाया हूँ


मैं ज़ख्म ज़ख्म हूँ लेकिन दवा भी लाया हूँ
घुटन के बीच में  ताज़ी हवा भी लाया हूँ

वो राहगीर जो तनहा चले हैं मंजिल को
उन्ही के वास्ते दिल की दुआ भी लाया हूँ

मिजाज़ सारे पता थे  मुझे चौराहों  के
बहस के वास्ते इक मुद्दआ भी लाया हूँ

तेरे गुरूर को शाबासियाँ हैं जी भर के
मुझे पसंद थी, थोड़ी हया भी लाया हूँ

तेरी हिकारतें ही अब नसीब हैं जिसका
मैं उसी शख्स की गूँगी सदा भी लाया हूँ

- आनंद 

रविवार, 12 मई 2013

मई का महीना


तुम तो जानती हो
मई का महीना
मेरे लिए एकदम वैसे ही होता है
जैसे वृन्दावन वालों के लिए फागुन
जैसे ईमान वालों के लिए रमज़ान
नींद खुलते ही अज़ान के सुरों के साथ ही
घुस आती है तुम्हारी याद
तुम्हें पहले से ही दिल तक पहुँचने की हर राह मालूम है
पूजा की चौकी पर अब नहीं होती तुम
आँसू अब भी होते हैं
पर वो पागलपन के दिन ही कुछ और थे
यकीन करो मई में घंटों निहारता रहता हूँ
कैलेण्डर को चुपचाप
किसी से कहता भी नहीं अब
कि किस तारीख में क्या ख़ास है
मुझपर अब तुम्हें भूल जाने का दबाव
पहले से बहुत ज्यादा है
ऐसे में मेरे पास और क्या चारा है
सिवाय इसके
कि मैं और जोर से पकड़ लेता हूँ
तुम्हारी यादों का दामन
हर बार
एक भयभीत बच्चे की तरह !

ऐसे में
मुझे अपना एक शेर बेसाख्ता याद आता है

'हमने भी आज तक उसे भरने नहीं दिया
रिश्ता हमारा-आपका बस ज़ख्म भर का था'

_ आनंद

शनिवार, 11 मई 2013

माँ

बावरी हुई है मातु प्रेम प्रेम बोलि रही
तीन लोक डोलि डोलि खुद को थकायो है
गायो नाचि नाचि कै हिये की पीर बार बार
प्रेम पंथ मुझ से कपूत को दिखायो है 

भसम रमाये एकु जोगिया दिखाय गयो
कछु न सुहाय हाय जग ही भुलायो है
धाय धाय चढ़त अटारी महतारी मोरि
छोड़ि लोक लाज सभी काज बिसरायो है

पायो है महेश अंश दंश सभी दूरि भये
धूरि करि चित्त के विकार दिखलायो है
भूरि भूरि करत प्रसंशा जगवाले तासु
मातु ने आनंद को आनंद से मिलायो है

- आनंद 

शुक्रवार, 10 मई 2013

बैठा हुआ सूरज की अगन देख रहा हूँ

बैठा हुआ सूरज की अगन देख रहा हूँ
गोया तेरे जाने का सपन देख रहा हूँ

मेरी वजह से आपके चेहरे पे खिंची थी
मैं आजतक वो एक शिकन देख रहा हूँ

सदियों के जुल्मो-सब्र नुमाया है आप में
मत सोचिये मैं सिर्फ़ बदन देख रहा हूँ

दिखती कहाँ हैं आँख से तारों की दूरियाँ
ये कैसी आस है कि  गगन देख रहा हूँ

रंगों से मेरा बैर कहाँ ले चला मुझे
चूनर के रंग का ही कफ़न देख रहा हूँ

जुमले तमाम झूठ किये एक शख्स  ने
पत्थर के पिघलने का कथन देख रहा हूँ

'आनंद' इस तरह का नहीं, और काम में
जलने का मज़ा और जलन देख रहा हूँ

- आनंद