शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2012

अजीब शख्स था अपना बना के छोड़ गया


हरेक  रिश्ता सवालों  के  साथ जोड़  गया
अजीब शख्स था, अपना बना के छोड़ गया

कुछ इस तरह से नज़ारों कि बात की उसने
मैं खुद को छोड़ के उसके ही साथ दौड़ गया

तिश्नगी तो न बुझायी गयी दुश्मन से मगर
पकड़ के हाथ  समंदर के पास  छोड़ गया  

मेरी दो बूँद से ज्यादा कि नहीं  कुव्वत थी 
सारे बादल मेरी आँखों में क्यों निचोड़ गया

कहाँ से लाऊं  मुकम्मल वजूद  मैं  अपना 
कहीं से जोड़ गया वो  कहीं से तोड़ गया 

हर घड़ी  कहता था 'आनंद'  जान हो मेरी
कैसा पागल था अपनी जान यहीं छोड़ गया 

-आनंद 
१४ मई २०१२ 

गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012

बेशक मैंने दुनिया को चुना




बीते कई दिनों
एक ग़ज़ल ऐसे लटकी है गले से
जैसे तेरी याद
कुछ शेर आये बाकी के नखरे ...
जब कोई चीज़ हलक में फँसी हो तो
दुनिया में कुछ भी अच्छा नहीं लगता
जैसे लंगड़ डाली हुई गाय
कहने को छुट्टा छोड़ दी गयी हो चरने के लिये
पीड़ा को कहना ज्यादा मुश्किल है
बनिस्बत पीड़ा को जीने के
मैंने भी तो कहने का रास्ता चुना
तुम्हारी एक न सुनी
बेशक मैंने दुनिया को चुना
और सींचता रहूँगा अपने लहू से
इस क्यारी को
ताकि तुम इस में मनचाहे रंगों के फूल खिला सको
रोज बदल सको
रस रंग और सुगंध
आत्मा और आध्यात्म के नाम पर

आत्मा और आध्यात्म
सच में मुक्त करता है जीवन को
मगर उनको जिनके पेट भरे हों
जो भूखे हों उन्हें आध्यात्म नहीं
भगवान का ही सहारा होता है
और आत्मा
इसे भी मजदूर की देह से उतनी ही चिढ़ है
जितनी आध्यात्म को अज्ञान और मोह से
आत्मा को भाती है...
सन्सक्रीम, कोल्डक्रीम और माश्चरायज़र लगी त्वचा
गर्व से निवास करती है वो उसमें
और आध्यात्म ...
क्या कहूँ
तुम्हारा जीवन और तुम्हारा प्रेम
काफ़ी है सब कुछ कहने के लिये |


- आनंद
११-१०-२०१२

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012

रहोगे न ?

हजार बार मन किया 
बेवफा कह दूं तुझे पर तेरी आँखें 
देखने लगती हैं मुझे एकटक 
मुझे वो तुम्हारा हिस्सा नहीं लगती 
वो न तो झुकती हैं 
न इधर उधर देखती हैं 
और न ही कोई बहाना करती हैं 
बस ऐसे देखती हैं 
जैसे कोई देखता है खुद को आईने में दिन भर के बाद 
मैं खुश हो जाता हूँ
तुम में कुछ तो है अभी बाकी मेरा
वफ़ा बेवफाई
दूरियाँ नजदीकियाँ
मिलन वियोग
प्रेम और प्रेम भी नहीं
ये तो सब जीवन का हिस्सा हैं
जब तक जीवन रहेगा ये सब रहेंगी ही
मगर तुम तो जीवन के बाद भी रहोगे
रहोगे न ?


चौरासी लाख कम नहीं होते यार
मुझसे अकेले
इतना चक्कर नहीं काटा जाएगा |


-आनंद
8-10-2012 

शनिवार, 6 अक्टूबर 2012

जंग ये जारी नहीं तो और क्या है दोस्तों

भूख लाचारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
जंग ये जारी नहीं तो और क्या है दोस्तों

अब कोई मज़लूम न हो हक़ बराबर का मिले
ख़्वाब  सरकारी  नहीं तो और क्या है दोस्तों

चल रहे भाषण महज औरत वहीं की है वहीं 
सिर्फ़ मक्कारी नहीं तो और क्या है दोस्तों

अमन भी हो प्रेम भी हो जिंदगी खुशहाल हो
राग दरबारी नहीं  तो  और  क्या  है  दोस्तों

नदी नाले  कुँए  सूखे,  गाँव  के  धंधे  मरे
अब मेरी बारी नहीं तो और क्या है दोस्तों

इश्क मिट्टी का भुलाकर हम शहर में आ गए
जिंदगी प्यारी नहीं तों और क्या है दोस्तों

- आनंद
०६-१०-२०१२ 

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2012

रास्ते तो न मिटाए कोई

बेवजह अब  न  रुलाये  कोई
गर कभी अपना बनाये कोई

दिले-नादाँ को संगदिल करलूं
कैसे, मुझको  भी बताये  कोई

वो नहीं लौटने वाला  लेकिन
रास्ते  तो  न  मिटाए  कोई

दर्द के फूल दर्द की खुशबू
दर्द के गाँव तो आये कोई

मौत आने तलक तो जीने दे
रात दिन यूँ न सताये  कोई

जिनकी महलों से आशनाई हो
क्यों उन्हें झोपड़ी भाए कोई

काश वो भी उदास होता हो
जिक्र जब मेरा चलाये कोई

एक  'आनंद' भी इसमें है जब
खामखाँ खुद को मिटाए कोई

- आनंद
०४/१०/२०१२