बीते कई दिनों
एक ग़ज़ल ऐसे लटकी है गले से
जैसे तेरी याद
कुछ शेर आये बाकी के नखरे ...
जब कोई चीज़ हलक में फँसी हो तो
दुनिया में कुछ भी अच्छा नहीं लगता
जैसे लंगड़ डाली हुई गाय
कहने को छुट्टा छोड़ दी गयी हो चरने के लिये
पीड़ा को कहना ज्यादा मुश्किल है
बनिस्बत पीड़ा को जीने के
मैंने भी तो कहने का रास्ता चुना
तुम्हारी एक न सुनी
बेशक मैंने दुनिया को चुना
और सींचता रहूँगा अपने लहू से
इस क्यारी को
ताकि तुम इस में मनचाहे रंगों के फूल खिला सको
रोज बदल सको
रस रंग और सुगंध
आत्मा और आध्यात्म के नाम पर
आत्मा और आध्यात्म
सच में मुक्त करता है जीवन को
मगर उनको जिनके पेट भरे हों
जो भूखे हों उन्हें आध्यात्म नहीं
भगवान का ही सहारा होता है
और आत्मा
इसे भी मजदूर की देह से उतनी ही चिढ़ है
जितनी आध्यात्म को अज्ञान और मोह से
आत्मा को भाती है...
सन्सक्रीम, कोल्डक्रीम और माश्चरायज़र लगी त्वचा
गर्व से निवास करती है वो उसमें
और आध्यात्म ...
क्या कहूँ
तुम्हारा जीवन और तुम्हारा प्रेम
काफ़ी है सब कुछ कहने के लिये |
- आनंद
११-१०-२०१२
हम्म्म्म
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
अनु
गहन अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ...
बहुत गहरे उतर गये :)
जवाब देंहटाएंऔर आत्मा
जवाब देंहटाएंइसे भी मजदूर की देह से उतनी ही चिढ़ है
जितनी आध्यात्म को
अज्ञान और मोह से
आत्मा को भाती है
सन्सक्रीम, कोल्डक्रीम और माश्चरायज़र लगी त्वचा
गर्व से निवास करती है वो उसमें
और आध्यात्म ...
क्या कहूँ
तुम्हारा जीवन और तुम्हारा महलों से प्रेम
काफ़ी है सब कुछ कहने के लिये |...............................ये जिंदगी का सच है ...पर कुछ अधूरा सा ....हर किसी की अपनी सोच है
तेरी या मेरी एक अलग है
जीवन शैली
जीना हैं हम सबको
इसके ही दायरों में
हाँ !हम अलग है
और अलग ही रहेंगे
वो विचारधार हो या जीवन में
फिर भी एक इंसान तो है
और वो ही जरुरी भी है ||...अंजु(अनु)