बेवजह अब न रुलाये कोई
गर कभी अपना बनाये कोई
दिले-नादाँ को संगदिल करलूं
कैसे, मुझको भी बताये कोई
वो नहीं लौटने वाला लेकिन
रास्ते तो न मिटाए कोई
दर्द के फूल दर्द की खुशबू
दर्द के गाँव तो आये कोई
मौत आने तलक तो जीने दे
रात दिन यूँ न सताये कोई
जिनकी महलों से आशनाई हो
क्यों उन्हें झोपड़ी भाए कोई
काश वो भी उदास होता हो
जिक्र जब मेरा चलाये कोई
एक 'आनंद' भी इसमें है जब
खामखाँ खुद को मिटाए कोई
- आनंद
०४/१०/२०१२
गर कभी अपना बनाये कोई
दिले-नादाँ को संगदिल करलूं
कैसे, मुझको भी बताये कोई
वो नहीं लौटने वाला लेकिन
रास्ते तो न मिटाए कोई
दर्द के फूल दर्द की खुशबू
दर्द के गाँव तो आये कोई
मौत आने तलक तो जीने दे
रात दिन यूँ न सताये कोई
जिनकी महलों से आशनाई हो
क्यों उन्हें झोपड़ी भाए कोई
काश वो भी उदास होता हो
जिक्र जब मेरा चलाये कोई
एक 'आनंद' भी इसमें है जब
खामखाँ खुद को मिटाए कोई
- आनंद
०४/१०/२०१२
काश वो भी उदास होता हो
जवाब देंहटाएंजिक्र जब मेरा चलाये कोई
वाह ... बहुत खूब।
बेवजह अब न रुलाये कोई
जवाब देंहटाएंगर कभी अपना बनाये कोई
Bahut,bahut sundar!
हर बार की तरह लाजवाब...|
जवाब देंहटाएं"जिनकी महलों से आशनाई हो
क्यों उन्हें झोपड़ी भाए कोई" एक सफ़ेद सच |
सादर नमन |
हर बार की तरह...लाजवाब |
जवाब देंहटाएं"जिनकी महलों से आशनाई हो
क्यों उन्हें झोपड़ी भाए कोई" एक सफ़ेद सच |
सादर|
बहुत सुंदर ॥
जवाब देंहटाएंआज 06-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं.... आज की वार्ता में ... उधार की ज़िंदगी ...... फिर एक चौराहा ...........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया गजल..
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन..
:-)
दर्द के फूल दर्द की खुशबू
जवाब देंहटाएंदर्द के गाँव तो आये कोई...........वाह बहुत खूब
पर दर्द की इन्तहां के बाद कौन सी मंजिल है ??????