मंज़िल के बाद कौन सफ़र ढूंढ रहा हूँ
अपने से दूर तुझको किधर ढूंढ रहा हूँ
कहने को शहर छोड़कर सहरा में आ गया
पर एक छाँवदार शज़र ढूंढ रहा हूँ
जिसकी नज़र के सामने दुनिया फ़िजूल है
हर शै में वही एक नज़र ढूंढ रहा हूँ
लाचारियों का हाल तो देखो कि इन दिनों
मैं दुश्मनों में अपनी गुजर ढूंढ रहा हूँ
तालीम हमने पैसे कमाने की दी उन्हें
नाहक नयी पीढ़ी में ग़दर ढूंढ रहा हूँ
जैसे शहर में ढूंढें कोई गाँव वाला घर
मैं मुल्क में गाँधी का असर ढूंढ रहा हूँ
यूँ गुम हुआ कि सारे जहाँ में नहीं मिला
'आनंद' को मैं शामो-सहर ढूंढ रहा हूँ
- आनंद
०२/१०/२०१२
अपने से दूर तुझको किधर ढूंढ रहा हूँ
कहने को शहर छोड़कर सहरा में आ गया
पर एक छाँवदार शज़र ढूंढ रहा हूँ
जिसकी नज़र के सामने दुनिया फ़िजूल है
हर शै में वही एक नज़र ढूंढ रहा हूँ
लाचारियों का हाल तो देखो कि इन दिनों
मैं दुश्मनों में अपनी गुजर ढूंढ रहा हूँ
तालीम हमने पैसे कमाने की दी उन्हें
नाहक नयी पीढ़ी में ग़दर ढूंढ रहा हूँ
जैसे शहर में ढूंढें कोई गाँव वाला घर
मैं मुल्क में गाँधी का असर ढूंढ रहा हूँ
यूँ गुम हुआ कि सारे जहाँ में नहीं मिला
'आनंद' को मैं शामो-सहर ढूंढ रहा हूँ
- आनंद
०२/१०/२०१२
वाह: बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंबढ़िया शेर.
अनु
वाह बहुत अच्छे शेर...खासकर ये वाला
जवाब देंहटाएंजैसे शहर में ढूंढें कोई गाँव वाला घर
मैं मुल्क में गाँधी का असर ढूंढ रहा हूँ
Kya baat...kya baat...kya baat...!
जवाब देंहटाएंBahut hi umde sher.
जवाब देंहटाएंजिसकी नज़र के सामने दुनिया फ़िजूल थी
हर शै में वही एक नज़र ढूंढ रहा हूँ
Sabhee ashar kamal ke hain!
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति......