पानी की एक बूँद
छत से चली
मुझे देखते हुए
मैं भी देख रहा था उसे ही
आकर आँख के नीचे गिरी
टप्प !
थोड़ी देर बाद एक और चली
मगर मैंने
इस बार लगा दी थी थाली
ठम्म
इस बार वो बंट गयी
सैकड़ों हिस्सों में
मैंने देखा
एक को अनेक होते हुए
ऐसे ही
तेरी याद की एक छोटी सी बूँद
जब भी टकराती है
मेरे पत्थर हो चुके जेहन से
न जाने कितने रंग रूप और हिस्से
हो जाते हैं
फिर यादों के |
- आनंद
छत से चली
मुझे देखते हुए
मैं भी देख रहा था उसे ही
आकर आँख के नीचे गिरी
टप्प !
थोड़ी देर बाद एक और चली
मगर मैंने
इस बार लगा दी थी थाली
ठम्म
इस बार वो बंट गयी
सैकड़ों हिस्सों में
मैंने देखा
एक को अनेक होते हुए
ऐसे ही
तेरी याद की एक छोटी सी बूँद
जब भी टकराती है
मेरे पत्थर हो चुके जेहन से
न जाने कितने रंग रूप और हिस्से
हो जाते हैं
फिर यादों के |
- आनंद
waah anand ji behtareen rachna
जवाब देंहटाएंआपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 29/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंन जाने कितने रंग रूप और हिस्से
जवाब देंहटाएंहो जाते हैं
फिर यादों के |
एक बार जो आ जाये ...गहराती ही है ....
सुंदर अभिव्यक्ति ...आनंद भाई ...
भावनाओं को उपमाओं में बहुत
जवाब देंहटाएंही खूबसूरती से पिरोया है आपने....
बहुत बेहतरीन रचना...
:-)
लाजवाब....गहरे भाव..सीधे दिल में उतरती हुई |
जवाब देंहटाएंवाह आनंदजी बहुत ही बेहतरीन रचना पढ़ी आज...बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंजेहन ही पत्थर हुआ है दिल नहीं ... समा जाएगी कभी ये बूंद मन मरुस्थल में .... गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
pathar se hue jehan ko ret ka bana do bhaiya... sareee bunde sama jayegi:)
जवाब देंहटाएंभाई आनंद जी बहुत सुन्दर कविता और हमारे ब्लॉग सुनहरी कलम पर आने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंभाव, भाषा एवं अभिव्यक्ति सराहनीय है। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
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