भूख लाचारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
जंग ये जारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
अब कोई मज़लूम न हो हक़ बराबर का मिले
ख़्वाब सरकारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
चल रहे भाषण महज औरत वहीं की है वहीं
सिर्फ़ मक्कारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
अमन भी हो प्रेम भी हो जिंदगी खुशहाल हो
राग दरबारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
नदी नाले कुँए सूखे, गाँव के धंधे मरे
अब मेरी बारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
इश्क मिट्टी का भुलाकर हम शहर में आ गए
जिंदगी प्यारी नहीं तों और क्या है दोस्तों
- आनंद
०६-१०-२०१२
जंग ये जारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
अब कोई मज़लूम न हो हक़ बराबर का मिले
ख़्वाब सरकारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
चल रहे भाषण महज औरत वहीं की है वहीं
सिर्फ़ मक्कारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
अमन भी हो प्रेम भी हो जिंदगी खुशहाल हो
राग दरबारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
नदी नाले कुँए सूखे, गाँव के धंधे मरे
अब मेरी बारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
इश्क मिट्टी का भुलाकर हम शहर में आ गए
जिंदगी प्यारी नहीं तों और क्या है दोस्तों
- आनंद
०६-१०-२०१२
अमन भी हो प्रेम भी हो जिंदगी खुशहाल हो
जवाब देंहटाएंराग दरबारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
बहुत खूब।
जिंदगी के कुछ राज़ अभी भी छिपे हैं दोस्त ....
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंलाजवाब...उम्दा भाव |
जवाब देंहटाएंइश्क मिट्टी का भुलाकर हम शहर में आ गए
जवाब देंहटाएंजिंदगी प्यारी नहीं तों और क्या है दोस्तों
छु गया दिल को
बधाई हो
आनंद भाई बहुत खूब शेर कहें हैं...हर शेर में रदीफ़ का निर्वाह बहुत अच्छा है...अगर बुरा न माने तो एक बात कहूँ, आपके इस शेर को:
जवाब देंहटाएंचल रहे भाषण महज औरत वहीं की वहीं है
सिर्फ़ मक्कारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
यूँ होना चाहिए :
चल रहे भाषण महज औरत वहीं की है वहीं
सिर्फ़ मक्कारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
एक और शेर
कुआँ-पोखर नदी-नाले, गाँव के धंधे मरे
अब मेरी बारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
के मिश्रा-ऐ-ऊला में बहर सही से निर्वाह नहीं हुई...इसे चाहें तो यूँ कह सकते हैं:
सब नदी नाले कुएं गावों के धंधे मर गए
अब मेरी बारी नहीं तो और क्या है दोस्तों
मेरी बात का बुरा लगा हो तो क्षमा करें.
नीरज
नीरज जी गज़ल की खुशकिस्मती कि उसे आपका स्नेह मिला आवश्यक फेरबदल हो गया है मार्गदर्शन के लिये हृदय से आभार !
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