सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

क्या क्या रंग दिखायेगा ....



उसका यूँ मुझको तड़पाना क्या क्या रंग दिखायेगा
दिल पर जादू सा कर जाना क्या क्या रंग दिखायेगा 

इन आँखों में तू ही तू है,  कैसे और ख़्वाब पालूं
ऐसी आँखों को छलकाना क्या क्या रंग दिखायेगा

तुझको खुदा बनाकर मैंने सब कुछ तेरे नाम किया
क़ातिल का मुंसिफ हो जाना क्या क्या रंग दिखायेगा

तेरा आना ना-मुमकिन हो तो अपनी यादों से कह
यूँ फागुन में आना जाना क्या क्या रंग दिखायेगा

कहते थे ऐसे मत देखो, मुझको कुछ हो जाता है
अब उनका ही नज़र चुराना क्या क्या रंग दिखायेगा

पता नहीं 'आनंद' कहाँ है खुद में है या दुनिया में
उसका यूँ फक्कड़ हो जाना क्या क्या रंग दिखायेगा


 -आनंद द्विवेदी
०६ फरवरी २०१२


बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

ऐसा मुमकिन कम है ..................यादें बस यादें.... जो है नितांत अपनी !!



हो सकता है कभी याद तुमको आजाऊं 
ऐसा मुमकिन कम है लेकिन हो सकता है

हो सकता है कभी उन्हीं राहों से गुजरो
हो सकता है उस नदिया तक फिर जाना हो
हो सकता है साजन तेरा मिलने आये
हो सकता है उस बगिया तक फिर जाना हो
हो सकता है फिर से वो चिड़ियों का जोड़ा
देखे तुमको आँखों में कुछ विस्मय भरकर
हो सकता है गीत वही फिर टकरा जाएँ
डूब गये थे हम गहरे जिन को सुन सुन कर

पल भर को चितवन में बस मैं ही छा जाऊं 
ऐसा मुमकिन कम है लेकिन हो सकता है

हो सकता है फिर से वही चांदनी छाये
हो सकता है नौका में बैठो फिर से तुम
हो सकता रिमझिम सावन फिर से बरसे
बहती धारा में मुमकिन पैठो फिर से तुम
तेरे बालों की  मेहँदी की खुशबू शायद
हो सकता है कभी किसी को पागल करदे
गोरे गोरे पांव चूम ले कोई शायद
बस इतनी सी बात नयन में बादल भर दे

तुम फिर गाओ गीत और मैं सुन भी पाऊं
ऐसा मुमकिन कम है लेकिन हो सकता है !!

आनंद द्विवेदी
१० जनवरी २०१२


शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

बेवजह आँख भर गयी फिर से






जुस्तजू सी उभर गयी फिर से
शाम भी कुछ निखर गयी फिर से

तेरा  पैगाम  दे  गया  कासिद
जैसे धड़कन ठहर गयी फिर से

तेरी बातों की बात ही क्या है
कोई खुशबू बिखर गयी फिर से

जिंदगी! होश में भी है,  या कहीं
मयकदे  से गुज़र गयी फिर से ?

रात इतनी वफ़ा मिली मुझको
जैसे तैसे सहर हुयी फिर से

वो तो बेमौत ही मरा होगा
जिस पे तेरी नज़र गयी फिर से

तेरा दीदार मिले तो समझूं
कैसे किस्मत संवर गयी फिर से

कहके 'आनंद' पुकारा किसने
बेवजह आँख भर गयी फिर से

-आनंद द्विवेदी २२-२६ /०१/२०१२

सोमवार, 16 जनवरी 2012

मेरे साथ हमेशा सब की चल जाती मनमानी है




तेरी याद चली आयी या मौसम की शैतानी है
ऐसा क्यों लगता है जैसे फिर से शाम सुहानी है 

तेरी यादों की दुनिया भी जालिम तेरे जैसी है 
पल भर में अपनी लगती है पल भर में बेगानी है 

तेरे पिंजरे का ये पंक्षी कब का उड़ना भूल गया 
धड़कन तो चलती रहनी है जब तक दाना पानी है 

तेरी जिन राहों पर मैंने बंदनवार सजाये थे 
वो राहें तेरे क़दमों की आज तलक  दीवानी हैं 

तुझको यादों में आना हो या फिर आँख छलकना हो 
मेरे साथ हमेशा सब की चल जाती मनमानी है 

या तेरी यादों में डूबूं या जमुना में डूब मरूं 
जोड़-घटाकर  मेरे हिस्से दो ही बातें आनी हैं 

मेरी आती-जाती सांसें पिया मिलन में बाधक हैं 
सोंच रहा हूँ आखिर कैसे ये दीवार गिरानी है 

कल 'आनंद' मिला था मुझको गुमसुम खोया-खोया सा 
कुछ पूछो तो हंस पड़ता है, पर  आँखों में  पानी है  

- आनंद द्विवेदी १६-०१-२०१२ 

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

मैं यही सोंचकर बाज़ार तक आ पहुंचा हूँ







बदगुमानी है, या ऐतबार तक आ पहुंचा हूँ,
जो भी हो आपके दरबार  तक आ पहुंचा हूँ

आज भी, उसको खिलौने पसंद हों शायद 
मैं यही सोंचकर बाज़ार तक आ पहुंचा हूँ 

जिसको देखो वो यहाँ  बेखुदी में लगता है  
मैं भी शायद दरे-सरकार तक आ पहुंचा हूँ 

मुझको मांझी का पता था न खबर मौजों की 
हौसला देखिये, मझधार  तक आ पहुंचा हूँ

मैं उसे खोजने  निकला था सितारों कि तरफ
खोजता खोजता संसार तक आ पहुंचा हूँ 

जबसे 'आनंद' के  हालात  नज़र से देखे
दिल्लगी!  मैं  तेरे इंकार तक आ पहुंचा हूँ

-आनंद द्विवेदी १२-०१-२०१२