शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

बेवजह आँख भर गयी फिर से






जुस्तजू सी उभर गयी फिर से
शाम भी कुछ निखर गयी फिर से

तेरा  पैगाम  दे  गया  कासिद
जैसे धड़कन ठहर गयी फिर से

तेरी बातों की बात ही क्या है
कोई खुशबू बिखर गयी फिर से

जिंदगी! होश में भी है,  या कहीं
मयकदे  से गुज़र गयी फिर से ?

रात इतनी वफ़ा मिली मुझको
जैसे तैसे सहर हुयी फिर से

वो तो बेमौत ही मरा होगा
जिस पे तेरी नज़र गयी फिर से

तेरा दीदार मिले तो समझूं
कैसे किस्मत संवर गयी फिर से

कहके 'आनंद' पुकारा किसने
बेवजह आँख भर गयी फिर से

-आनंद द्विवेदी २२-२६ /०१/२०१२

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपके इस उत्‍कृष्‍ठ लेखन के लिए आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूब...

    "है ये 'आनंद' का नया अंदाज
    जिंदगी यूँ संवर गयी फिर से....!!"

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पूनम जी ये आपके कमेंट्स का ही अंदाज़ मात्र है :)

      हटाएं
  3. जिंदगी! होश में भी है, या कहीं
    मयकदे से गुज़र गयी फिर से ? बहुत बढ़िया पंक्तियां। तेरी बातों 'कि' बात ही क्या है में 'की' होना चाहिए शायद। मात्राओं की अशुद्धि अच्छी ग़ज़ल में खटकने लगती है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दीपिका जी आभार आपका आपने अशुद्धि की ओर ध्यान आकृष्ट किया !

      हटाएं
  4. तेरी बातों कि बात ही क्या है

    कोई खुशबू बिखर गयी फिर से..
    आपकी गज़ल पे खुद लागू होता है ये शेर .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जिंदगी! होश में भी है, या कहीं
      मयकदे से गुज़र गयी फिर से ?

      रात इतनी वफ़ा मिली मुझको
      जैसे तैसे सहर हुयी फिर से
      Kya kamaal ka likha hai!

      हटाएं
  5. बहुत खूब...
    अच्छी गज़ल पढ़ने को मिल गयी फिर से...
    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  6. आनंद जी...! क्या बात कही फिर से ...

    जवाब देंहटाएं
  7. एक बार फिर से ....लाजबाब ...बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...
    ऐसी ही खुशबू बिखेरिये फिर से...आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. तेरी बातों की बात ही क्या है
    कोई खुशबू बिखर गयी फिर से

    सचमुच उसका जिक्र हो तो सब तरफ खुशबू बिखर जाती है...बेहद उम्दा गजल, आभार!

    जवाब देंहटाएं
  10. कहके 'आनंद' पुकारा किसने
    बेवजह आँख भर गयी फिर से
    प्यारे आनंद को शुभकामनायें ....

    जवाब देंहटाएं