बुधवार, 26 अक्टूबर 2011
शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011
फिर वही दिन आ गये, फिर गुनगुनाना आ गया
फिर वही दिन आ गये, फिर गुनगुनाना आ गया,
जाते जाते लौटकर , मौसम सुहाना आ गया |
फिर किसी रुखसार की सुर्खी हवा में घुल गयी,
फिर मुझे तनहाइयों में मुस्कराना आ गया |
सबकी नजरों से छुपाकर, उसने देखा फिर मुझे,
फिर मेरे मदहोश होने का ज़माना आ गया |
शोखियों की बात हो या सादगी की बात हो,
हर अदा से अब उसे बिजली गिराना आ गया |
अब नही पढ़ पाइयेगा, उसकी रंगत देखकर,
उस हसीं चेहरे को भी , बातें छुपाना आगया |
मेरे दिलवर से मुझे भी , कुछ हुनर ऐसा मिला,
आग के दरिया से मुझको, पार जाना आगया |
जिंदगी 'आनंद' की, अब भी वही है दोस्तों,
हाँ मगर उसको, उसे जन्नत बनाना आ गया |
- आनंद द्विवेदी ०६/१०/२०११
रविवार, 2 अक्टूबर 2011
इतना कुछ दे डाला है.....
राज छुपाये दुनिया भर के, खाक जहाँ की छान रहे
कितने ज्ञानी मिले राह में, हम फिर भी नादान रहे
सारे जीवन भर के शिकवे, अपने साथ ले गये वो
मेरे घर भी ख्वाब सुहाने, दो दिन के मेहमान रहे
आखिर उनका भी तो दिल है, दिल के कुछ रिश्ते होंगे
क्यों ये बात न समझी हमने, बे मतलब हलकान रहे
अपने से ही सारी दुनिया, बनती और बिगड़ती है
जिस ढंग की मेरी श्रद्धा थी, वैसे ही भगवान रहे
तू है प्राण और मैं काया, तू लौ है मैं बाती हूँ
ये रिश्ते बेमेल नही थे, भले न एक समान रहे
जाते जाते साथी तूने, इतना कुछ दे डाला है
साथ न रहकर भी सदियों तक, तू मेरी पहचान रहे
दुआ करो 'आनन्द' सीख ले, तौर तरीके जीने के
फिर चाहे तेरी महफ़िल हो, या दुनिया वीरान रहे
-आनन्द द्विवेदी, ०२/१०/२०११
शनिवार, 1 अक्टूबर 2011
मुझे रस्सी पे चलने का तजुर्बा तो नहीं, लेकिन
जरा फुर्सत से बैठा हूँ, नज़ारों पास मत आओ,
मैं अपने आप में खुश हूँ, बहारों पास मत आओ |
सितमगर ने जो करना था किया, मझधार में लाकर,
जरा किस्मत भी अजमा लूं, किनारों पास मत आओ |
मुझे रस्सी पे चलने का तजुर्बा तो नहीं, लेकिन
मैं फिर भी पार कर लूँगा, सहारों पास मत आओ |
मेरी खामोशियाँ बोलेंगी, और वो बात सुन लेगा,
जो कहना है मैं कह दूंगा, इशारों पास मत आओ |
कई सदियों तलक मैंने भी, काटे चाँद के चक्कर ,
बड़ी मुश्किल से ठहरा हूँ, सितारों पास मत आओ |
महज़ 'आनंद' की खातिर , गंवाओ मत सुकूँ अपना,
न चलना साथ हो मुमकिन, तो यारों पास मत आओ |
-आनंद द्विवेदी ३०/०९/२०११
शनिवार, 24 सितंबर 2011
चिराग़ बनके, कोई राह दिखाता है मुझे
राह अनजान है, तूफां भी डराता है मुझे,
मैं तो गिर जाऊं तेरा प्यार बचाता है मुझे |
घेर लेते हैं अँधेरे, निगाह को जब भी ,
चिराग़ बनके, कोई राह दिखाता है मुझे |
जब भी होता है गिला मुझको, मुकद्दर से मेरे,
दिल की दुनिया में कोई पास बुलाता है मुझे |
जिस तरफ देखूं, जहाँ जाऊं, तेरा ही चेहरा,
हाय रे 'इश्क', अजब रंग दिखाता है मुझे |
जिक्र जब तेरा उठे , कैसे सम्भालूँ खुद को,
दोस्त कहते हैं कि, तू नाच नचाता है मुझे |
प्यार करता है मुझे बेपनाह वो जालिम,
दिन में दो चार दफे रोज़ रुलाता है मुझे |
वो न मिलता तो भला कौन समझता मुझको,
प्यार उसका ही तो 'आनंद' बनाता है मुझे ||
-आनंद द्विवेदी २४-०९-२०११
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