राह अनजान है, तूफां भी डराता है मुझे,
मैं तो गिर जाऊं तेरा प्यार बचाता है मुझे |
घेर लेते हैं अँधेरे, निगाह को जब भी ,
चिराग़ बनके, कोई राह दिखाता है मुझे |
जब भी होता है गिला मुझको, मुकद्दर से मेरे,
दिल की दुनिया में कोई पास बुलाता है मुझे |
जिस तरफ देखूं, जहाँ जाऊं, तेरा ही चेहरा,
हाय रे 'इश्क', अजब रंग दिखाता है मुझे |
जिक्र जब तेरा उठे , कैसे सम्भालूँ खुद को,
दोस्त कहते हैं कि, तू नाच नचाता है मुझे |
प्यार करता है मुझे बेपनाह वो जालिम,
दिन में दो चार दफे रोज़ रुलाता है मुझे |
वो न मिलता तो भला कौन समझता मुझको,
प्यार उसका ही तो 'आनंद' बनाता है मुझे ||
-आनंद द्विवेदी २४-०९-२०११
प्यार करता है मुझे बेपनाह वो जालिम,
जवाब देंहटाएंदिन में दो चार दफे रोज़ रुलाता है मुझे |
प्रेम की चरम परिणति है यह .....! लेकिन जब इंसान प्रेम करता है तो वह मोह और प्रेम में अंतर नहीं कर पाता इसी कारण वह पछताता है .....नैसर्गिक रूप से किया गया प्रेम जीवन को बहुत कुछ दे जाता है .....!
बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल..... द्विवेदी जी
जवाब देंहटाएंक्या बात है गज़ब लिखते है आप
जवाब देंहटाएंगज़ब के भावो को संजोया है …………शानदार गज़ल्।
जवाब देंहटाएंप्यार करता है मुझे बेपनाह वो जालिम,
जवाब देंहटाएंदिन में दो चार दफे रोज़ रुलाता है मुझे |.....बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल..... द्विवेदी जी...अभिव्यंजना में आप की प्रतीक्षा है.....
जब भी होता है गिला मुझको, मुकद्दर से मेरे,
जवाब देंहटाएंदिल की दुनिया में कोई पास बुलाता है मुझे |
बहुत खूबसूरत गज़ल .
सुन्दर भाव. से रची रचना....
जवाब देंहटाएं"राह अनजान है, तूफां भी डराता है मुझे,
जवाब देंहटाएंमैं तो गिर जाऊं तेरा प्यार बचाता है मुझे |"
मैं तो न जाने कब का मर गया होता !
ए खुदा बढ़के जो तूने न सम्भाला होता !!
माशाअल्लाह.....
आनंद जी.................बहुत खूबसूरत गज़ल है..हरेक शेर लाज़वाब ...
जवाब देंहटाएंतीसरा ,चौथा और छठा शेर ..बहुत अच्छे लगे
वाह ...बहुत खूब ।
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