बुधवार, 6 जुलाई 2011

बोलो कुछ तो बोलो सजनी.....



मैं आज जगत का स्वामी हूँ
तुम बाहुपाश में, मेरे हो,
सहसा इस प्रकृति प्रियतमा ने
ज्यों सुन्दर चित्र उकेरें हों ,
मैं तुमको क्या क्या भेंट करूं
क्षण लोगी या जीवन लोगी
                   बोलो कुछ तो बोलो सजनी
                   दिल लोगी या धड़कन लोगी

जो स्वप्नों से हो प्यार तुम्हें
तो नभ ले लो, उडगन ले लो 
हो स्वप्नों का विस्तार प्रिये
तुम मन ले लो, मोहन ले लो
मैं तुमको क्या क्या भेंट करूं
दृग लोगी या चितवन लोगी
                बोलो कुछ तो बोलो सजनी
                दिल लोगी या धड़कन लोगी

तुम शुभ्र चांदनी, चंदा की
खुशबू जैसे, चन्दन वन की
तुम दशों दिशाओं की मलिका
इच्छित हो मेरे जीवन की
मैं तुमको क्या क्या भेंट करूं
मधु लोगी, या मधुवन लोगी
                बोलो कुछ तो बोलो सजनी
                दिल लोगी या धड़कन लोगी ||

   -आनंद द्विवेदी ३०-०६-२०११ 

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

मेरी बस्ती से अंधेरों.. भागो !



खामखाँ मुझको सताने आये,
फिर से कुछ ख्वाब सुहाने आये |

मेरी बस्ती से अंधेरों.. भागो,
वो नई शम्मा जलाने आये  |

जिनको सदियाँ लगी भुलाने में,
याद वो किस्से पुराने आये  |

वो जरा रूठ क्या गया मुझसे,
गैर फिर उसको मनाने आये |

मेरी दीवानगी..सुनी होगी,
लोग अफसोश जताने आये !

मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
क्या पता कब वो बुलाने आये |

उसके हिस्से में जन्नतें आयीं ,
मेरे हिस्से में जमाने  आये   |

यारों 'आनंद' से मिलो तो कभी,
आजकल उसके जमाने आये  ||

   -आनंद द्विवेदी ३०-०६-२०११ 

गुरुवार, 30 जून 2011

तुमने फिर से वहीं मारा है ज़माने वालों







हर तरीका मेरा  न्यारा है,  ज़माने वालों ,
आज कल वक़्त हमारा है, ज़माने वालों !

जख्म रूहों के भरे जायेंगे, कैसे मुझसे ,
तुमने फिर से वहीं मारा है, ज़माने वालों !

दो घड़ी चैन से तुमने जिसे जीने न दिया,
किसी की आँख का तारा है, ज़माने वालों !

बेवजह ही नहीं मैं बांटता, जन्नत के पते,
मैंने कुछ वक़्त गुज़ारा है, ज़माने वालों  !

कौन कम्बख्त भला होश में रह पायेगा ?
जिस तरह उसने निहारा है, ज़माने वालों !

आज 'आनंद' की दीवानगी से जलते हो ,
तुमने ही उसको बिगाड़ा है, ज़माने वालों !

       आनंद द्विवेदी १६-०५-२०११

शनिवार, 11 जून 2011

प्यार छुपाना मुश्किल है...





सांसों पर पहरे बैठे हैं, कुछ कह पाना मुश्किल है,
दर्द छुपाना आसाँ था पर, प्यार छुपाना मुश्किल है!

नदी किनारे जिस पत्थर पर पहरों बैठे थे हम-तुम,
खुद को भूल गया हूँ लेकिन, उसे भुलाना मुश्किल है!

पीने वाले आँखों के मयखाने से,  पी लेते हैं,
कहने वाले कहते घूमें लाख, जमाना मुश्किल है !

ये उसकी साजिश है कोई, या उसका दीवानापन
मुझसे ही कहता है, तुमसा आशिक़ पाना मुश्किल है!

तुम ही कुछ समझाओ यारों, मेरे इस नादाँ दिल को,
फिर उसको पाने को मचला, जिसको पाना मुश्किल  है !

मेरे दिलबर की दुनिया भी खूब तिलस्मी दुनिया है
आना तो आसाँ है इसमें, वापस जाना मुश्किल है !

जाने उसकी आँखों में क्या बात क़यामत वाली है 
जिससे नज़रें मिल जाएँ, उसका बच पाना मुश्किल है !

मिले कहीं 'आनंद' तुम्हें तो , सुन लेना बातें उसकी ,
सचमुच दीवाना  है वो, उसको समझाना मुश्किल है   !!

    --आनंद द्विवेदी ११-०६-२०११ 

गुरुवार, 2 जून 2011

पता ही नहीं चला.... !


कब उनसे हुई बात, पता ही नहीं चला 
कब बदली क़ायनात, पता ही नहीं चला !

यूँ मयकशी से मेरा, कोई वास्ता न था 
कब हो गयी शुरुआत, पता ही नहीं चला !

उस एक मुलाकात ने क्या क्या बदल दिया 
'वो' बन गये हयात , पता ही नहीं चला ! 

दो चार घड़ी बाहें, दो चार घड़ी सपने 
कब  बीत गयी रात, पता ही नहीं चला !

मीठी सी चुभन वाली, हल्की सी कसक वाली 
कब हो गयी बरसात , पता ही नहीं चला !

हम कब से आशिकी को, बस दर्द समझते थे 
कब बदले ख़यालात , पता ही नहीं चला !

'आनंद' को मिलना था, इक रोज़ बहारों से 
कब बन गए हालात,  पता ही नहीं चला  !

आनंद द्विवेदी ०१/०६/२०११