हर तरीका मेरा न्यारा है, ज़माने वालों ,
आज कल वक़्त हमारा है, ज़माने वालों !
जख्म रूहों के भरे जायेंगे, कैसे मुझसे ,
तुमने फिर से वहीं मारा है, ज़माने वालों !
दो घड़ी चैन से तुमने जिसे जीने न दिया,
किसी की आँख का तारा है, ज़माने वालों !
बेवजह ही नहीं मैं बांटता, जन्नत के पते,
मैंने कुछ वक़्त गुज़ारा है, ज़माने वालों !
कौन कम्बख्त भला होश में रह पायेगा ?
जिस तरह उसने निहारा है, ज़माने वालों !
आज 'आनंद' की दीवानगी से जलते हो ,
तुमने ही उसको बिगाड़ा है, ज़माने वालों !
आनंद द्विवेदी १६-०५-२०११
बेवजह ही नहीं मैं बांटता, जन्नत के पते,
जवाब देंहटाएंमैंने कुछ वक़्त गुज़ारा है, ज़माने वालों !
वाह ...बहुत खूब कहा है
जख्म रूहों के भरे जायेंगे, कैसे मुझसे ,
जवाब देंहटाएंतुमने फिर से वहीं मारा है, ज़माने वालों ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार...
khubsurat gazal...
जवाब देंहटाएंकौन कम्बख्त भला होश में रह पायेगा ?
जवाब देंहटाएंजिस तरह उसने निहारा है, ज़माने वालों !
bahut khoob , sbhi she'r umda
agr type thodi moti kar sko to sbhi ko padhne men aasani rhegi
कौन कम्बख्त भला होश में रह पायेगा ?
जवाब देंहटाएंजिस तरह उसने निहारा है, ज़माने वालों !
बहुत सुंदर।
कौन कम्बख्त भला होश में रह पायेगा ?
जवाब देंहटाएंजिस तरह उसने निहारा है, ज़माने वालों !
बहुत खूब ..सुन्दर गज़ल
कौन कमबख्त भला होश में रह पायेगा ?
जवाब देंहटाएंजिस तरह उसने निहारा है, ज़माने वालों
........................वाह द्विवेदी जी वाह
...........क्या शेर है !
खुबसूरत ग़ज़ल .....हर शेर सुन्दर
बहुत ही खूबसूरत गज़ल.
जवाब देंहटाएंसादर
"जख्म रूहों के भरे जायेंगे, कैसे मुझसे ,
जवाब देंहटाएंतुमने फिर से वहीं मारा है, ज़माने वालों !"
"बेवजह ही नहीं मैं बांटता, जन्नत के पते,
मैंने कुछ वक़्त गुज़ारा है, ज़माने वालों !"
हमेशा की तरह लाजवाब....
":उनकी नज़र-ए-करम कुछ इस तरह होती गई
होश में हो के भी बेहोश हम होते गए.. "
***पूनम***
बस यूँ...ही..
कौन कम्बख्त भला होश में रह पायेगा ?
जवाब देंहटाएंजिस तरह उसने निहारा है, ज़माने वालों !
vaah,kya baat hai.