खामखाँ मुझको सताने आये,
फिर से कुछ ख्वाब सुहाने आये |
मेरी बस्ती से अंधेरों.. भागो,
वो नई शम्मा जलाने आये |
जिनको सदियाँ लगी भुलाने में,
याद वो किस्से पुराने आये |
वो जरा रूठ क्या गया मुझसे,
गैर फिर उसको मनाने आये |
मेरी दीवानगी..सुनी होगी,
लोग अफसोश जताने आये !
मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
क्या पता कब वो बुलाने आये |
उसके हिस्से में जन्नतें आयीं ,
मेरे हिस्से में जमाने आये |
यारों 'आनंद' से मिलो तो कभी,
आजकल उसके जमाने आये ||
-आनंद द्विवेदी ३०-०६-२०११
मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
जवाब देंहटाएंक्या पता कब वो बुलाने आये!
Bahut khub Anand sa. ......
गज़ब की प्रस्तुति…………हर शेर शानदार।
जवाब देंहटाएंउसके हिस्से में जन्नतें आयीं ,
जवाब देंहटाएंमेरे हिस्से में जमाने आये
वाह ...बहुत खूब, हर शेर लाजवाब लिखा है ।
bahut badhiyaa ghazal...........
जवाब देंहटाएंbahut shaandaar anand bhai !
जवाब देंहटाएंमैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
जवाब देंहटाएंक्या पता कब वो बुलाने आये |
उसके हिस्से में जन्नतें आयीं ,
मेरे हिस्से में जमाने आये
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
वो जरा रूठ क्या गया मुझसे,
जवाब देंहटाएंगैर फिर उसको मनाने आये |
हर कोई मौक़े की ताड़ में रहता है। कब लाभ मिल जाए!
बहुत अच्छी ग़ज़ल।
बंधुवर आनन्द जी
जवाब देंहटाएंअत्र कुशलम् तत्रास्तु !
अच्छी ग़ज़ल है …
उसके हिस्से में जन्नतें आयीं
मेरे हिस्से में ज़माने आये
बहुत ख़ूबसूरत शे'र है … ज़माने को सीधे नर्क नहीं बताया … :)
मंगलकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bhut khubsurat gazal...
जवाब देंहटाएंजिनको सदियाँ लगी भुलाने में,
जवाब देंहटाएंयाद वो किस्से पुराने आये |
मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
क्या पता कब वो बुलाने आये |
इस ग़ज़ल के माध्यम से आपने सुंदर भावों का एक गुलदस्ता सामने रखा एक ही ग़ज़ल में विविध भावों का सम्प्रेषण आपकी रचना कौशलता का परिचायक है .....आपका आभार
मैं तो जूते पहन के सोता हूँ,
जवाब देंहटाएंक्या पता कब वो बुलाने आये |
शानदार....
"जिनको सदियाँ लगी भुलाने में,
जवाब देंहटाएंयाद वो किस्से पुराने आये |"
बस खूबसूरत...!!