गज़ब का लुत्फ़ होता है दिल-ए-पुर-खूँ की मस्ती में
ज़िगर पर चोट खाये बिन मुकम्मल कौन हस्ती में
न जाने किस भरोसे पर मुझे माँझी कहा उसने
कई सूराख़ पहले से हैं इस जीवन की कश्ती में
हमारी देह का रावन तुम्हारी नेह की सीता
'लिविंग' में साथ रहते हैं नई दिल्ली की बस्ती में
तुम्हारी साझेदारी का कोई सामान क्यों बेचूँ
पड़ी रहने दो सब ग़ज़लें ये ग़म खुशियाँ गिरस्ती में
हमारे शहर् मत आना यहाँ सब काम उल्टे हैं
यहाँ 'आनंद' जिंदा है ग़मों की सरपरस्ती में
- आनंद
ज़िगर पर चोट खाये बिन मुकम्मल कौन हस्ती में
न जाने किस भरोसे पर मुझे माँझी कहा उसने
कई सूराख़ पहले से हैं इस जीवन की कश्ती में
हमारी देह का रावन तुम्हारी नेह की सीता
'लिविंग' में साथ रहते हैं नई दिल्ली की बस्ती में
तुम्हारी साझेदारी का कोई सामान क्यों बेचूँ
पड़ी रहने दो सब ग़ज़लें ये ग़म खुशियाँ गिरस्ती में
हमारे शहर् मत आना यहाँ सब काम उल्टे हैं
यहाँ 'आनंद' जिंदा है ग़मों की सरपरस्ती में
- आनंद
बहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब शेर हैं सभी ...
सुन्दर शभ्द रचना
जवाब देंहटाएंहिन्दी की गज़ल में लिविंग शब्द को प्रयोग बहुत अच्छा लगा
http://savanxxx.blogspot.in
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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