बुधवार, 29 जनवरी 2014

मेरे जैसों को भले ग़म के तराने दे दे

मेरे जैसों को भले ग़म के तराने दे दे
दर्दमंदों को मगर ख़्वाब सुहाने दे दे

तू खुदा है भला तेरे लिये क्या मुश्किल है
जिन्दगी दी है तो जीने के बहाने दे दे

कुछ नहीं होने से बेहतर है एक ज़ख्म रहे
रतजगे दे दे, तसव्वुर के ज़माने दे दे

कितनी उम्मीद से इस अंज़ुमन में आये हैं
राहगीरों को जरा देर ठिकाने दे दे

हसरतें कितनी महज़ हसरतें ही रहती हैं
इस हकीकत की जगह  चंद  फ़साने दे दे

हौसलों आओ जरा  इम्तेहान हो जाये
मुझको हर हाल में जीकर के दिखाने दे दे

माँगना जाँचना तौहीन है,  'आनंद' नहीं
तू  नियामत न लुटा,   दर्द पुराने दे दे  !

- आनंद






मंगलवार, 28 जनवरी 2014

प्रेम

जो प्रेम का नाम लेते हैं,
दुहाई देते हैं,
प्रेम की महिमा का बखान करते हैं
पा लेना चाहते हैं
कुछ न कुछ
किसी न किसी बहाने
मैं वही हतभाग्य हूँ

ईश्वर और प्रेम
एक हैं
एक ही है
इन तक पहुँचने का तरीका
अकारण ... बिना हेतु
'सम्पूर्ण समर्पण' !

- आनंद 

बुधवार, 15 जनवरी 2014

नहीं कह सकता कुछ भी

नहीं लिख सकता
अब अपनी उदासी
ना ही कह सकता हूँ  किसी से
खुलकर यह बात
कि अब न तुम हो
न वो सारी परेशानियाँ
जिनसे भरी रहती थी हमेशा
शर्ट की उपरी जेब
जरा सा झुकते ही टपक जाया करती थी
कोई न कोई शिकायत

लाख मन हो पर नहीं गा सकता
लड़कपन का कोई गीत
हो नहीं सकता वहाँ कभी भी
जहाँ जहाँ होना चाहता हूँ
पूछ नहीं सकता किसी से भी
दिल का राज़
दिखा नहीं सकता किसी को
अपना खोखलापन

आजकल इतना अकेला हूँ कि
नहीं महसूस कर सकता किसी को भी अपने आसपास
और इतना घिरा हूँ अपने आसपास से कि
तलाश रहा हूँ थोड़ा सा एकान्त
ताकि लिख सकूँ फिर से
एक प्रेम कविता
जिसे लिखते हुए रो पडूँ मैं
और पढ़ते हुए
मुस्करा पड़ो तुम !

- आनंद




मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

इंतजार

मैं विदा नहीं करता किसी को भी
चले जाते हैं सब के सब
अपने आप ही,
अपने स्वयं के जाने तक
मुझे देखना है बस सबका
आना और आकर चला जाना

इस उम्मीद में हूँ कि
शायद कोई ठहरे
पूछे
कि कैसे हो,
कोई कहे
कि आओ साथ चलें,  
मगर एक इंतजार के सिवा
कोई ठिठकता भी नहीं अब पास

इंतजार कुछ कहता नहीं
मैं भी कुछ पूछता नहीं,
हम दोनों हैं
मौन,
एक दूसरे से ऊबे हुए
एक दूसरे के साथ को अभिशप्त !

 - आनंद

रविवार, 29 दिसंबर 2013

कैसे जानूँ तुझे



तुम हो
क्योंकि मेरा वज़ूद है अब तक
और कैसे जानूँ  तुमको 
सिवाय जीवन की तरह अनुभव करने के,
तुम्हें और खुश करने के हज़ार जतन ढूँढता है मन 
जब होते हो तुम खुश,
ढूँढता है मनाने के लाख बहाने
जब होते हो नाखुश, 
डूबता है तुम्हें उदास देखकर 
नाचता है तुम्हारी अल्हड़ता से 
गर्वीला हो उठता है…पास पाकर तुम्हें, 
एक मौन सा पसर जाता है जीवन पर 
तुम्हें पाकर दूर 

तुम इसे प्रेम मानो या न मानो 
मैं इसे जीवन मानूँ या न मानूँ 
सच यही है कि  
मेरे तुम्हारे इन सम्बन्धों में 
तुम न होकर भी हर पल व्याप्त हो 
किसी अनचीन्हें ईश्वर की तरह 
मैं हर पल होकर भी कहीं नहीं हूँ
नश्वर संसार की तरह

तुम सत्य हो
मैं कथ्य
तुम चेतन हो
मैं जड़ 
और हमारे संयोग का नाम है
'जीवन' !


- आनंद