तुम हो
क्योंकि मेरा वज़ूद है अब तक
और कैसे जानूँ तुमको
सिवाय जीवन की तरह अनुभव करने के,
तुम्हें और खुश करने के हज़ार जतन ढूँढता है मन
तुम्हें और खुश करने के हज़ार जतन ढूँढता है मन
जब होते हो तुम खुश,
ढूँढता है मनाने के लाख बहाने
जब होते हो नाखुश,
ढूँढता है मनाने के लाख बहाने
जब होते हो नाखुश,
डूबता है तुम्हें उदास देखकर
नाचता है तुम्हारी अल्हड़ता से
गर्वीला हो उठता है…पास पाकर तुम्हें,
एक मौन सा पसर जाता है जीवन पर
तुम्हें पाकर दूर
तुम इसे प्रेम मानो या न मानो
मैं इसे जीवन मानूँ या न मानूँ
सच यही है कि
मेरे तुम्हारे इन सम्बन्धों में
तुम न होकर भी हर पल व्याप्त हो
किसी अनचीन्हें ईश्वर की तरह
मैं हर पल होकर भी कहीं नहीं हूँ
नश्वर संसार की तरह
तुम सत्य हो
मैं कथ्य
तुम चेतन हो
मैं जड़
नश्वर संसार की तरह
तुम सत्य हो
मैं कथ्य
तुम चेतन हो
मैं जड़
और हमारे संयोग का नाम है
'जीवन' !
'जीवन' !
- आनंद
दुःख....वियोग का नाम ही तो दुःख है..
जवाब देंहटाएंअद्भुत परिभाषा... जीवन मृत्यु की...!
जवाब देंहटाएंbehad prabhavi..dil ko choo gayi apki panktiyan..
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