अपना ऐसा ही अफ़साना है भैया
पपड़ी ताजी जख़्म पुराना है भैया
सब के होंठों पर है बात मोहब्बत की
अन्दर झाँको तो वीराना है भैया
उससे अक्सर अपनों के ही क़त्ल हुए
मेरा जिस शै से याराना है भैया
कौन किसी की गलियों में डेरा डाले
ठहरे, जब तक आबो दाना है भैया
बरसाती नदियों के जिम्मे खेती है
उम्मीदों की फ़सल उगाना है भैया
टीवी वाले बाबा अक्सर कहते हैं
खाली हाथ जहाँ से जाना है भैया
बातें जाने की, उद्यम सब टिकने के
जीवन है या दारूखाना है भैया
मनमंदिर की मूरत में 'आनंद' नहीं
बाहर सबको ज्ञान बताना है भैया।
© आनंद
बेहद सुन्दर...
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी!!!
आनंद जी
जवाब देंहटाएंकाफी भावपूर्ण गजल....
कभी पधारिए हमारे ब्लॉग पर भी.....
नयी रचना
"एहसासों के "जनरल डायर"
आभार
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अमर शहीद ऊधम सिंह ज़िंदाबाद - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!!!
अनु
सही कहा है...कथनी और करनी में अंतर है यहाँ..अद्वैत देखना हो तो दिल की गहराई में ही जाना होगा..
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ग़ज़ल
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