गुरुवार, 14 नवंबर 2013

बची हुई ध्वनियाँ

वो पंक्षी
आज नहीं रोया
छटपटाया भी नहीं
भूल से भी नहीं किया किसी से
दूसरे उड़ते हुए पंक्षियों के बारे में बात
बल्कि बैठा बड़े ही इत्मीनान से
अपने ही हाथों से
नोचता रहा  .... एक एक करके
अपने पंख,
अपने कभी न उड़ पाने का ऐसा विश्वास....
आखिर दुनिया
विश्वास  से ही तो चलती है !

तुम्हारा न होना
एकदम ऐसा ही है
जैसे
दिन का न होना
पानी का न होना
या फिर न होना शब्द का
इस बार बची हुई ध्वनियाँ भी
साथ ले जाना तुम !

चीर फाड़ देने
नसें काट देने / बदल देने से
क्या होगा ?
विज्ञान को कुछ नहीं पता
दिल के बारे में
और न ही उसको लगने वाले रोग के बारे में !

- आनंद

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

अन्दर दीपक बुझा हुआ है

अंदर दीपक बुझा हुआ है पर बाहर दीवाली है
ऊपर से सब हरा भरा है अंदर खाली खाली है

मौसम का रुख देख देख कर मुझको ऐसा लगता है
जिसमें चोट सताती है,  वो पुरवा चलने वाली है

मेरा मुझमे नहीं रहा कुछ, अच्छा बुरा उसी का है
हम जिस सावन के अंधे हैं ये उसकी हरियाली है

मुझको तो कुछ पत्थर भी अब इंसानों से लगते हैं
इंसानों में भी पत्थर की नस्लें आने वाली हैं

कितने दिन 'आनंद' रहेगा तू बेगानी बस्ती में
अपनेपन की परछाई भी आँख चुराने वाली है

-आनंद 

रविवार, 10 नवंबर 2013

बे-उमंग !

सुबह गुनगुने सूरज के बगल में
एक सिंहासन खाली देख
मन उदास हो गया
आज मेरे ख्वाबों ने
उसे
वहाँ
मेरे लिए ही तो रखा था

मोबाइल में सन्देश की धुन बजते ही
लपक कर उठाया
और पाया कि 
अल-सुबह मोबाइल कंपनी ने
बिल भेजे जाने की अग्रिम सूचना भेजी है
नहीं भेजा तुमने
कुछ भी
कभी भी
मेरे लिए

और इस तरह एक बार फिर
मैं धरती पर ही हूँ
नहीं निकल सका उस यात्रा पर
जिसका टिकट हमेशा तुम्हारे पास था,
राम जाने
चलने से पहले
ऐसा क्यों किया तुमने
पर अब लगता है कि
ठीक ही किया

तुम पर अटूट विश्वास …  मेरी शक्ति
धीरे धीरे
बदल गयी.....  मेरी दुर्बलता में,
तुम देखते रहे
हमेशा निस्पृह,
निस्संग
बेउमंग

तुम्हारे लिए मेरी ये अंतिम कविता है
एकदम वैसी ही बेउमंग
जिसे मैं चाहूँगा
तुम कभी न पढ़ो !

- आनंद

शनिवार, 9 नवंबर 2013

मन के या बे-मन के हैं


मन के या  बे-मन के हैं  
हम भी फूल चमन के है

मेरे ग़म का रंज़ न कर
हम ऐसे बचपन के हैं 

सच को देखे कौन भला 
सारे दृश्य नयन के हैं

बातें त्याग तपस्या की
लेकिन ध्यान बदन के हैं

अपने प्राण-पखेरू भी
कल को नील गगन के हैं

एक हो गयी है दुनिया
तन मन से सब धन के हैं 

किससे क्या उम्मीद करूँ
सब तो अपने मन के हैं

साँसों तुम ही थम जाओ
सब झँझट धड़कन के हैं

है 'आनंद' नाम भर का
दर्द सभी जीवन के हैं

 - आनंद









गुरुवार, 7 नवंबर 2013

तू है ख़ुदा, तो कर ये...


तू है ख़ुदा, तो कर ये एहतराम के लिए
थोड़ा सा दर्द भेज, आज  शाम के लिए

जो रिंद कभी होश में आया न उम्र भर
उसको न रोक यार, एक ज़ाम के लिए

इतनी न दिखा मुझपे सितमगर इनायतें
तू ही  बहुत है, हसरते-नाकाम के लिए

मुंसिफ़ है तू, गवाह भी है, मुद्दयी भी है
हाज़िर है गुनहगार भी इल्ज़ाम के लिए

आनंद ! कभी जिंदगी  से पूछ भी तो ले
है नाम के लिए या किसी काम के लिए

- आनंद