सुबह गुनगुने सूरज के बगल में
एक सिंहासन खाली देख
मन उदास हो गया
आज मेरे ख्वाबों ने
उसे
वहाँ
मेरे लिए ही तो रखा था
मोबाइल में सन्देश की धुन बजते ही
लपक कर उठाया
और पाया कि
अल-सुबह मोबाइल कंपनी ने
बिल भेजे जाने की अग्रिम सूचना भेजी है
नहीं भेजा तुमने
कुछ भी
कभी भी
मेरे लिए
और इस तरह एक बार फिर
मैं धरती पर ही हूँ
नहीं निकल सका उस यात्रा पर
जिसका टिकट हमेशा तुम्हारे पास था,
राम जाने
चलने से पहले
ऐसा क्यों किया तुमने
पर अब लगता है कि
ठीक ही किया
तुम पर अटूट विश्वास … मेरी शक्ति
धीरे धीरे
बदल गयी..... मेरी दुर्बलता में,
तुम देखते रहे
हमेशा निस्पृह,
निस्संग
बेउमंग
तुम्हारे लिए मेरी ये अंतिम कविता है
एकदम वैसी ही बेउमंग
जिसे मैं चाहूँगा
तुम कभी न पढ़ो !
- आनंद
एक सिंहासन खाली देख
मन उदास हो गया
आज मेरे ख्वाबों ने
उसे
वहाँ
मेरे लिए ही तो रखा था
मोबाइल में सन्देश की धुन बजते ही
लपक कर उठाया
और पाया कि
अल-सुबह मोबाइल कंपनी ने
बिल भेजे जाने की अग्रिम सूचना भेजी है
नहीं भेजा तुमने
कुछ भी
कभी भी
मेरे लिए
और इस तरह एक बार फिर
मैं धरती पर ही हूँ
नहीं निकल सका उस यात्रा पर
जिसका टिकट हमेशा तुम्हारे पास था,
राम जाने
चलने से पहले
ऐसा क्यों किया तुमने
पर अब लगता है कि
ठीक ही किया
तुम पर अटूट विश्वास … मेरी शक्ति
धीरे धीरे
बदल गयी..... मेरी दुर्बलता में,
तुम देखते रहे
हमेशा निस्पृह,
निस्संग
बेउमंग
तुम्हारे लिए मेरी ये अंतिम कविता है
एकदम वैसी ही बेउमंग
जिसे मैं चाहूँगा
तुम कभी न पढ़ो !
- आनंद
मार्मिक!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंbadhiya
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