रविवार, 22 सितंबर 2013

दर्द को मेहमानखाने से हटाकर रख दिया

दर्द को मेहमानखाने से हटाकर रख दिया
फिर वहीँ हंसती हुई फ़ोटो मढ़ाकर रख दिया

रख दिया अलमारियों में बंद करके रतजगे
और टूटे ख्वाब के टुकड़े उठाकर  रख दिया

आ गया था दिल किसी मगरूर क़दमों के तले
आदतन उसने जरा खेला  मिटाकर रख दिया

कुछ तसव्वुर जिंदगी भर साथ रहने थे मगर
मैंने हर तस्वीर एल्बम में लगाकर रख दिया

जब  कभी तारीकियाँ होंगी  जला लेगा  मुझे
रोशनी थी इसलिए शायद बुझाकर रख दिया

घूम आया हर गली 'आनंद' जिसके वास्ते
जिंदगी ने वो हसीं लम्हा छुपाकर रख दिया

_ आनंद

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

आंसुओं की झील में ही

आँसुओं की झील में ही प्यास को जीते चलें
सैकड़ों की भीड़ में वनवास को जीते चलें

जब बनेगी तब बनेगी बात मंजिल से, अभी
राह के हाथों मिले संत्रास को जीते चलें

हो गयीं हदबंदियाँ अब दोस्ती में  प्रेम में
इस नदी में बाँध के अहसास को जीते चलें

काम आएँगी यही बेचैनियाँ, एकान्त में
जब तलक है, साथ के आभास को जीते चलें

हाथ में पकड़ा रहा है वक़्त, जीने के लिए
एक झूठी आस, लेकिन आस को जीते चलें

 - आनंद 

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

बेईमानी

बात चाहे खेल की हो
या जंग की
अब ये लगभग निश्चित है कि
जीतना तुझे ही है …. जिंदगी !
वैसे भी जो तेरे लिए खेल है
वही मेरे लिए जंग
मैं इस खेल में हूँ ही इसलिए
तेरी जीत जीत लगे
मेरा समर्पण  या पलायन
तुझे वंचित कर देगा
जीत के सुख से
इसलिए हार निश्चित जानते हुए भी
बने रहना है इस खेल में
बचपन में लुकाछिपी खेलने के दौरान
सीखी गयी बेईमानी
अब, बड़े काम आ रही है !

- आनंद



बुधवार, 11 सितंबर 2013

मैं प्रेम में नहीं हूँ ...

मैं प्रेम में नहीं हूँ
मगर महसूस करता हूँ
अपनी सांसों में एक खुशबू
एक नन्ही सी जान ने जैसे खरीद लिए हों
गुलाबों के खेत के खेत
अनायास याद आ जाती है
कस्तूरी और कस्तूरी मृग की कथा,
इन्द्रधनुषी आकाश से उतर कर ईश्वर जब स्वयं
बढ़ा दे दोस्ती का हाथ
तब बेमानी हो जाती है
सारी बातें
मिलने और बिछुड़ने की,
दसों दिशाओं में किसी की ऐसी अलौकिक उपस्थिति
पहले तो कभी नहीं रही !

मैं प्रेम में नहीं हूँ
मगर काम करते-करते अचानक रुक जाते हैं हाथ
कोई इतना पास आ जाता है कि
पल भर को मन
बच्चा हो उठता है
उसे छूने की ललक में उठे हाथ
यन्त्र चालित से पहुँचते हैं
अपनी ही आँखों तक
आजकल ऐनक बार बार दुरस्त करते
रहने का मन होता है,
और आज से पहले...
अपने आँसू… कभी मोती नहीं लगे
न ही कभी हुई
उन्हें किसी के चरणों में चढ़ाने की
इतनी व्याकुलता !

मैं प्रेम में नहीं हूँ
मगर प्रेम शायद हो मुझमें कहीं
जैसे विष में भी छुपी होती है औषधि
शोधन… निरंतर शोधन से
संभव है औषधि का जैसे प्रकट हो जाना
वैसे ही शायद संभव हो सके एक दिन
मेरा अर्पण,
जिसे स्वीकार भी कर सको तुम…  मेरे आराध्य,

माँ कहती है
भाव के घाव कभी नहीं भरते
प्रेम के भी अश्वत्त्थामा हुए हैं
जो कभी नहीं मरते…. !

- आनंद




सोमवार, 9 सितंबर 2013

आँखों में एक किर्च सी अक्सर गड़ी रही

आँखों में एक किर्च सी अक्सर गड़ी रही
ख्वाबों से हकीक़त ही  हमेशा  बड़ी रही

मैं मौत से भी अपने तजुर्बे न कह सका
लछमन की तरह सर की तरफ वो खड़ी रही

इस जिंदगी ने इतना तवज्जो दिया मुझे
हरदम मेरे सुकून के पीछे पड़ी रही

आज़ाद इश्क़ ने तो मुझे भी किया मियाँ  
पर रूह मिरी क़ैद की खातिर अड़ी रही

अगले जनम में देखने की बात हुई है
'आनंद' तुझे बेवजह जल्दी बड़ी रही

- आनंद