आँसुओं की झील में ही प्यास को जीते चलें
सैकड़ों की भीड़ में वनवास को जीते चलें
जब बनेगी तब बनेगी बात मंजिल से, अभी
राह के हाथों मिले संत्रास को जीते चलें
हो गयीं हदबंदियाँ अब दोस्ती में प्रेम में
इस नदी में बाँध के अहसास को जीते चलें
काम आएँगी यही बेचैनियाँ, एकान्त में
जब तलक है, साथ के आभास को जीते चलें
हाथ में पकड़ा रहा है वक़्त, जीने के लिए
एक झूठी आस, लेकिन आस को जीते चलें
- आनंद
सैकड़ों की भीड़ में वनवास को जीते चलें
जब बनेगी तब बनेगी बात मंजिल से, अभी
राह के हाथों मिले संत्रास को जीते चलें
हो गयीं हदबंदियाँ अब दोस्ती में प्रेम में
इस नदी में बाँध के अहसास को जीते चलें
काम आएँगी यही बेचैनियाँ, एकान्त में
जब तलक है, साथ के आभास को जीते चलें
हाथ में पकड़ा रहा है वक़्त, जीने के लिए
एक झूठी आस, लेकिन आस को जीते चलें
- आनंद
बहुत सुन्दर ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंअनु
सैकड़ों की भीड़ में वनवास को जीते चलें ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल
वाह ... बहुत ही लाजवाब गज़ल है ... सब शेर दिल को छूते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! जो आज झूठी सी लगती है..वही एक दिन सत्य का मार्ग दिखाएगी...
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